गांधीनगर ।। लोकायुक्त की नियुक्ति के मुद्दे पर एक याचिका अदालत में विचाराधीन होने के बावजूद इस मसले पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखने पर मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ सोमवार को गुजरात उच्च न्यायालय में दो अवमानना याचिकाएं दायर की गईं। लोकायुक्त के पद को भरने में हुई देरी को लेकर दो जनहित याचिकाएं भी दायर की गई हैं।
इन चारों याचिकाओं के अलावा न्यायमूर्ति [सेवानिवृत्त] आर.ए. मेहता की लोकायुक्त के रूप में नियुक्ति को चुनौती देने वाली राज्य सरकार की याचिका पर सुनवाई सात सितम्बर को होगी।
याचिकाकर्ता मानवाधिकार कार्यकर्ता भीखू जेठवा की ओर से पेश वकील आनंद याज्ञिक ने कहा कि मुख्यमंत्री ने इस मुद्दे पर सार्वजनिक रूप से बयान दिया, जबकि यह मामला उच्च न्यायालय में है। इसलिए उनके बयान को न्यायपालिका के कार्य में हस्तक्षेप माना जाए और इस लिहाज से यह अदालत की अवमानना है।
याज्ञिक ने कहा कि मोदी ने प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में लोकायुक्त की नियुक्ति को अमान्य करार देने की मांग उस वक्त की है, जब इस मुद्दे पर अदालत में कार्यवाही चल रही है। उन्होंने इस प्रकरण को सार्वजनिक भी कर दिया। इस तरह मुख्यमंत्री ने जानबूझकर अदालत की अवमानना की है।
इस बीच, जन संघर्ष मंच के प्रतिनिधि के तौर पर वकील मुकुल सिन्हा ने भी इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री के खिलाफ उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की तथा मांग की कि जब तक मुख्यमंत्री अवमानना मामले में स्वयं को निर्दोष साबित नहीं करते तब तक सरकार की याचिका पर सुनवाई नहीं की जाए।
अन्य दो जनहित याचिकाएं गांधी सेना ट्रस्ट एवं ध्रांगाधारा प्रकृति मंडल की ओर से दायर की गई हैं।
ज्ञात हो कि राज्यपाल कमला बेनीवाल ने सेवानिवृत्त न्यायाधीश आर.ए. मेहता को पिछले महीने गुजरात का लोकायुक्त नियुक्त किया था। नियुक्ति में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी [भाजपा] की पसंद का ख्याल नहीं रखे जाने पर इसके विरोध में उच्च न्यायालय में याचिका दायर की गई थी।
अधिवक्ता विजय नागेश ने कहा कि चूंकि राज्यपाल यचिका के प्रति उत्तरदायी नहीं हैं, इसलिए उनका नाम हटा दिया गया था। अब प्रथम उत्तरदायी मेहता हैं और दूसरे उच्च न्यायालय के महारजिस्ट्रार हैं।
सरकारी पक्ष ने इस मामले में राज्यपाल को उत्तरदायी बनाने की मांग की थी। न्यायमूर्ति अकील कुरैशी एवं न्यायमूर्ति सोनिया गोकानी की खंडपीठ ने सरकार से एक संशोधन याचिका दायर करने को कहा था, क्योंकि उसकी दलील संविधान के अनुच्छेद 361 के तहत स्वीकार नहीं की जा सकती।
उल्लेखनीय है कि राज्यपाल बेनीवाल ने राज्य सरकार को दरकिनार करते हुए 25 अगस्त को न्यायमूर्ति आर.ए. मेहता को राज्य का लोकायुक्त नियुक्त किया था। यह पद पिछले सात साल से रिक्त था। राज्यपाल का कहना था कि राज्य में जो कुछ हो रहा है, उसे देखकर वह ‘मूक दर्शक’ नहीं बनी रह सकतीं।