नई दिल्ली ।। केद्र सरकार अन्ना की शर्तों पर वोटिंग कराने के लिए तैयार हो गई है। संसद में लोकपाल प्रस्ताव ध्वनिमत से पारित होगा। इस मामले पर प्रधानमंत्री कक्ष में महत्वपूर्ण बैठक हुई और इसके बाद यह निर्णय लिया गया। सूत्रों के अनुसार टीम अन्ना को सरकार का यह फैसला मंजूर है।

पल-पल बदलती राजनीतिक परिस्थितियों के बीच, अब अन्ना के अनशन के टूटने आसार नजर आने लगे हैं। अगले आधा घंटे में वोटिंग होने की संभावना है।

ध्वनिमत से किसी प्रस्ताव को पारित करने में एक-एक सांसद को अलग से वोट नहीं देना पड़ता है, बल्कि मौखिक तौर पर वोटिंग होती है।

इससे पहले बीजेपी नेता सुषमा स्वराज ने कहा था कि सरकार लोकपाल पर जो भी प्रस्ताव लाएगी पार्टी दोनों सदनों में उसके पक्ष में मतदान करेगी। उन्होंने कहा कि सरकार टीम अन्ना को गुमराह न करे। इसके बाद प्रधानमंत्री के साथ लालकृष्ण आडवाणी, सुषमा स्वराज, अरुण जेटली, वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी, विधि मंत्री सलमान खुर्शीद और संसदीय कार्यमंत्री पवन बंसल की मीटिंग हुई और मीटिंग के बाद वोटिंग का फैसला लिया गया।

इससे पहले, अन्ना हजारे के करीबी सहयोगी प्रशांत भूषण ने कहा था कि सरकार की ओर से हमें बताया गया है कि अन्ना की शर्तों पर संसद में जो चर्चा हुई है, उस पर नो तो कोई प्रस्ताव आएगा और न ही वोटिंग होगी। उन्होंने कहा था कि सरकार का कहना है कि संसद में नियम 193 के तहत लोकपाल पर बहस हुई है, इसमें वोटिंग का प्रावधान नहीं है।

संसद में चर्चा

इससे पहले लोकसभा में सदन के नेता प्रणब मुखर्जी ने इस मसले पर चर्चा की शुरुआत करते हुए अन्ना के तीनों प्रमुख मांगों पर चर्चा कराने का प्रस्ताव रखा, जिस पर नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज ने अन्ना हजारे के जन लोकपाल विधेयक के अधिकतर मुद्दों से भारतीय जनता पार्टी के सहमत होने की घोषणा की। राज्यसभा में भी नेता प्रतिपक्ष अरुण जेटली ने भी कुछ ऐसा ही आश्वासन दिया।

अन्ना ने अनशन तोड़ने के लिए जन लोकपाल विधेयक के तीन प्रमुख बिंदुओं – लोकपाल की तरह राज्यों में लोकायुक्तों की नियुक्ति, लोकपाल के दायरे में सभी सरकारी कर्मचारियों को लाने और नागरिक चार्टर- पर सदन में प्रस्ताव पारित करने को कहा था।

सुबह 11 बजे लोकपाल के मसले पर चर्चा की शुरुआत करते हुए मुखर्जी ने कहा कि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र आज चौराहे पर खड़ा है। उन्होंने अन्ना के तीनों प्रमुख मुद्दों सहित भ्रष्टाचार के खिलाफ एक प्रभावी लोकपाल के मुद्दे पर सदन में संवैधानिक दायरे में रहते हुए व्यावहारिक और निष्पक्ष चर्चा कराने का प्रस्ताव रखा।

उन्होंने आशा जताई कि अन्ना के जन लोकपाल विधेयक के मुद्दों पर सदन में एक राय बन सकेगी ताकि सरकारी लोकपाल विधेयक पर विचार कर रही स्थायी समिति को सदन की भावना से अवगत कराया जा सके। मुखर्जी ने कहा, “स्थाई समिति इन सुझावों की संवैधानिकता, व्यावहारिकता और क्रियान्वित किए जा सकने की सम्भावना पर विचार कर सकती है।”

इस बीच राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद ने चर्चा में हस्तक्षेप करते हुए कहा कि लोकपाल विधेयक पर सदन में चर्चा की इजाजत देना सीधे-सीधे नियमों का उल्लंघन है। संसद की स्थायी समिति के सदस्य लालू ने कहा, “सदस्य जो भी बिदू उठाएंगे, उन्हें स्थायी समिति के सामने पेश किया जा सकता था।”

इसके बाद सुषमा स्वराज ने कहा कि अन्ना की पहली मांग केंद्र में लोकपाल की तरह राज्यों में लोकायुक्तों को नियुक्त करना है। उन्होंने कहा कि यह कहना कि लोकपाल एवं लोकायुक्त का एक ही कानून के अंतर्गत निर्माण असम्भव है, गलत है। उन्होंने कहा, “जब 1968 में पहला लोकपाल विधेयक बना था तब उसका नाम लोकपाल एवं लोकायुक्त विधेयक था।”

नेता विपक्ष ने कहा, “संविधान की धारा 252 के अंतर्गत यह प्रावधान है कि केंद्र सरकार चाहे तो दो या अधिक राज्यों की सहमति से ऐसा कानून बना सकती है, जो सहमति जताने वाले राज्यों पर लागू हो।”

अन्ना की दूसरी मांग नागरिक चार्टर बनाने से सहमति जताते हुए सुषमा ने कहा, “यह कानून नागरिक अधिकार के आधार पर निर्मित लोकसेवा प्रदाय गारंटी अधिनियम मध्य प्रदेश में पहले से लागू हैं। इसके अलावा इस तरह के कानून हिमाचल प्रदेश, बिहार एवं पंजाब में पहले से लागू हैं।”

अन्ना की तीसरी मांग कि सभी कर्मचारियों को लोकपाल के दायरे में लाना चाहिए पर स्वराज ने कहा, “आम जनता के मन में बड़े भ्रष्टाचार से क्रोध उत्पन्न होता है लेकिन उसका रोज सामना तंत्र के निचले स्तर में व्याप्त भ्रष्टाचार से होता है, जिससे वह परेशान होता है।”

सुषमा ने कहा, “अन्ना के आंदोलन में दिनचर्या में भ्रष्टाचार का सामना करने वाले आम लोगों ने शिरकत की है। उन्हें लगा है कि जन लोकपाल विधेयक उन्हें छोटे स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार से मुक्ति दिलाएगा। अगर लोकपाल के दायरे में निचले स्तर के कर्मचारियों को नहीं लाया जाएगा, तो आम नागरिक अपने को ठगा महसूस करेगा।”

इसके अलावा स्वराज ने लोकपाल के दायरे में प्रधानमंत्री और केंद्रीय जांच ब्यूरो [सीबीआई] को लाने का भी समर्थन किया। उन्होंने न्यायपालिका में पारदर्शिता के लिए अलग व्यवस्था का समर्थन किया।

कुछ ऐसी ही स्थिति राज्यसभा में थी। यहां भी मुखर्जी के भाषण से चर्चा की शुरुआत हुई। विपक्ष के नेता अरुण जेटली ने कहा कि सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे के समर्थन में लोगों के हुजूम से स्पष्ट संकेत मिलता है कि लोग वर्तमान व्यवस्था से खुश नहीं है।

जेटली ने कहा, “संकेत पूरी तरह से साफ है कि लोग वर्तमान यथास्थिति को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है।” उन्होंने कहा कि विभिन्न क्षेत्रों में भ्रष्टाचार जीवन का हिस्सा बन गया है।

जनता दल-युनाइटेड [जद-यू] के नेता शरद यादव ने तीनों प्रमुख मुद्दे पर अपना समर्थन व्यक्त किया। इसके साथ ही उन्होंने अन्ना हजारे के सहयोगियों को चेतावनी भरे लहजे में कहा कि वे अपनी वाणी को नियंत्रित रखें। उन्होंने कहा कि राजनीतिज्ञों का मजाक उड़ाने पर उन्हें बदले की कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है।

लोकसभा में लोकपाल विधेयक पर हो रही चर्चा में भाग लेते हुए यादव ने रामलीला मैदान में शुक्रवार को किरण बेदी और अभिनेता ओम पुरी के भाषणों में की गई टिप्पणियों का उल्लेख किया।

बिना बेदी या पुरी के नाम का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि उन्होंने राजनीतिज्ञों के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी की है।

उन्होंने कहा, “हमने पूरा जीवन सड़कों पर बिताया है। आप हमें क्या सिखाएंगे .. संसद ने भ्रष्टाचार के खिलाफ कई विधेयक पारित किए हैं।” उन्होंने कहा, “आप अपनी भाषा सभ्य रखें, हम अपनी भाषा सभ्य रखेंगे।” उन्होंने रामलीला मैदान पहुंचने वाले लोगों पर टिप्पणी करते हुए कहा, “वे इंडिया गेट पर गोलगप्पे खाते हैं। अपने कुत्ते घुमाते हैं और फिर कहते हैं कि चलो रामलीला मैदान चलते हैं।” यादव ने कहा कि संसद द्वारा बनाए गए कानूनों के कारण ही पुणे का व्यवसायी हसन अली और पूर्व केंद्रीय मंत्री ए. राजा जेल में बंद हैं। यादव ने कहा कि संसद में ऐसे कई लोग हैं जो जमीनी स्तर पर संघर्ष कर यहां पहुंचे हैं, लेकिन ऐसे कुछ ही लोग हैं, जिनके पिता या माता नेता थे।

उन्होंने कहा, “देश संसद के द्वारा चलाया जा रहा है. यहां लोग जानते हैं कि कृषि भूमि क्या होती है और लोगों का दर्द क्या होता है और आप वातानुकूलित कमरों में बैठकर हमें नसीहत दे रहे हैं।”

कांग्रेस सांसद संदीप दीक्षित ने अन्ना हजारे की भ्रष्टाचार निरोधी प्रभावी लोकपाल विधेयक से सम्बंधित तीन मुख्य मांगों का सशर्त समर्थन किया। संदीप दीक्षित ने कहा कि वह राज्यों में लोकायुक्तों की नियुक्ति व सभी सरकारी विभागों के लिए नागरिक चार्टर बनाए जाने और निचले दर्जे के कर्मचारियों को लोकपाल के दायरे में लाने की मांगों पर अन्ना की टीम के साथ सहमत हैं।

उन्होंने लोकसभा में सलाह दी कि केंद्र सरकार राज्यों में लोकपाल विधेयक का प्रारूप भेज सकती है ताकी वे अपने लोकपाल बना सकें। इसके लिए राज्यों से सहमति लेनी आवश्यक है। नागरिक चार्टर बनाने पर उन्होंने कहा कि सरकार इसे भी भ्रष्टाचार विरोधी तंत्र में शामिल करने की कोशिश कर रही थी। निचले दर्जे के कर्मचारियों को लोकपाल के दायरे में लाने पर दीक्षित ने कहा कि यह बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि आम आदमी इन्हीं कर्मचारियों के जरिए सरकार से जुड़ता है।

मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी [माकपा] नेता बासुदेव आचार्य ने कहा कि उनकी पार्टी एक ‘मजबूत और प्रभावी’ लोकपाल विधेयक चाहती है और यह भी चाहती है कि कारपोरेट जगत के भ्रष्टाचार को इसके दायरे में लाया जाए।

आचार्य ने कहा, “भ्रष्टाचार का कारपोरेट जगत, राजनेताओं और नौकरशाही से गठजोड़ है। पिछले राष्ट्रमंडल खेल के सिलसिले में हमने देखा किस तरह भ्रष्टाचार हुआ। इस गठजोड़ को तोड़ने की जरूरत है।”

राष्ट्रीय जनता दल [राजद] के अध्यक्ष लालू प्रसाद कहा कि अनशन पर बैठे गांधीवादी अन्ना हजारे को पूर्व पुलिस अधिकारी किरण बेदी सहित उनके सहयोगी गुमराह कर रहे हैं। बेदी की नजर आगामी आम चुनावों पर है।

उन्होंने कहा, “हम संसद की सर्वोच्चता को एक इंच भी इधर से उधर करने की अनुमति नहीं देंगे। अन्ना हजारे जिन लोगों से घिरे हैं वे लोग उन्हें गुमराह कर रहे हैं। केजरीवाल हमें सिखा रहे हैं। उन्हें बताया जाए कि स्थायी समिति छोटी संसद है।”

कुछ ऐसी ही स्थिति राज्यसभा में थी। यहां भी मुखर्जी के भाषण से चर्चा की शुरुआत हुई। विपक्ष के नेता अरुण जेटली ने कहा कि सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे के समर्थन में सामने आए लोगों की संख्या से स्पष्ट संकेत मिलता है कि लोग वर्तमान व्यवस्था से खुश नहीं हैं।

माकपा के सीताराम येचुरी ने राज्यसभा में कहा, “अन्नाजी द्वारा रखी गईं तीन मांगों पर हम सैद्धांतिक रूप से सहमत हैं। इन मांगों को लोकपाल विधेयक में शामिल किया जाए, लेकिन इन्हें भारतीय संविधान के अनुसार लागू किया जाए।” उन्होंने कहा कि देश के संघीय ढांचे को छेड़ा नहीं जाना चाहिए।

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