नई दिल्ली ।। प्रभावी लोकपाल की मांग को लेकर रविवार को जंतर-मंतर पर एक दिवसीय सांकेतिक उपवास पर बैठे प्रमुख समाजसेवी अन्ना हजारे को राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों का जबरदस्त समर्थन तो मिला लेकिन साथ ही यह हिदायत भी मिली की उन्हें भी अपने रुख में लचीलापन लाना चाहिए।

उन्होंने अन्ना हजारे को संसद में प्रभावी लोकपाल बनवाने का भरोसा भी दिलाया। वहीं, अन्ना हजारे ने कहा कि जनप्रतिनिधियों के यहां आने से उनके आंदोलन को ताकत मिली है।

प्रभावी लोकपाल की मांग को लेकर उपवास शुरू करने से पहले अन्ना हजारे ने ‘भारत माता की जय’, ‘वंदे मातरम’ व ‘इंकलाब जिंदाबाद’ के नारे लगाए। इससे पहले वह राजघाट गए और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि अर्पित की। इस बीच उनके सैकड़ों समर्थक जंतर-मंतर पर पहुंच चुके थे।

अन्ना हजारे ने इस मौके पर अपने सम्बोधन में कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर भी निशाना साधा।

उन्होंने कहा कि राहुल प्रधानमंत्री बनने के सपने देख रहे हैं लेकिन इसके लिए एक दिन झोपड़ी में बैठने से नहीं होगा, उन्हें बहुत त्याग करना होगा।

अन्ना हजारे ने कहा, “एक दिन झोपड़ी में बैठने से कुछ नहीं होता। राहुल प्रधानमंत्री बनने का सपना देख रहे हैं। इसके लिए उन्हें बहुत कुछ करना होगा।”

उन्होंने कहा कि राहुल का नाम लिए बगैर कहा कि उनके ही दबाव में संसद की स्थायी समिति ने अपनी सिफारिशें सौंपी है।

प्रधानमंत्री पर निशना साधते हुए उन्होंने कहा, “वह फैसले करने में सक्षम नहीं हैं और कोई उनकी सुनता भी नहीं है। वह खुद प्रधानमंत्री हैं लेकिन उनके सहयोगी भी खुद को प्रधानमंत्री ही समझते हैं।”

अन्ना हजारे ने गत अगस्त महीने में अनशन से पहले हुई अपनी गिरफ्तारी के लिए केंद्रीय गृह मंत्री पी. चिदम्बरम को जिम्मेदार ठहराया। “मेरी गिरफ्तारी के पीछे कौन था। चिदम्बरम इसके पीछे थे। देश का गृह मंत्री यदि ऐसा हो तो फिर देश का क्या होगा।”

उन्होंने कहा कि चिदम्बरम ने ही 4-5 जून की रात बाबा रामदेव व उनके समर्थकों पर रामलीला मैदान में हमला करने का आदेश दिया था।

विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता भी मंच पर पहुंचे और उन्होंने प्रभावी लोकपाल के पक्ष में विचार व्यक्त किए। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के अरुण जेटली और बीजू जनता दल (बीजद) के पिनाकी मिश्रा ने प्रधानमंत्री को भी लोकपाल के दायरे में लाने की मांग की।

वहीं, जनता दल (युनाटेड) के शरद यादव ने कहा, “संसद से पारित प्रस्ताव में कोई अल्पविराम या पूर्ण विराम भी नहीं बदलना चाहिए।” उनके सम्बोधन के बाद लोगों ने तालियों की गड़गड़ाहट के साथ उनका स्वागत व धन्यवाद किया।

भाजपा नेता जेटली ने संसद की स्थायी समिति की ओर से सौंपी गई लोकपाल रिपोर्ट पर संसद की भावना को नजरअंदाज करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, “अन्ना हजारे ने जब अपना पिछला अनशन तोड़ा था तो उस समय संसद के दोनों सदनों ने अपनी भावना प्रदर्शित की थी, जिसमें राज्यों के भीतर लोकायुक्त की नियुक्ति, सिटिजन चार्टर, निचले स्तर की अफसरशाही को लोकपाल के दायरे में लाने की बात कही गई थी। लेकिन स्थायी समिति की रिपोर्ट संसद की भावना के अनुरूप नहीं है।”

उन्होंने कहा, “स्थायी समिति में हमारे दल के जो सदस्य थे, उन्होंने असहमति के नोट के साथ अपने विचार रखे हैं। हमारी राय स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री लोकपाल के दायरे में होने चाहिए और केवल ग्रुप ‘ए’ और ‘बी’ के अधिकारी इसके दायरे में हों और ‘सी’ और ‘डी’ ग्रपु के अधिकारियों को इससे बाहर रखा जाएगा, इसे हम स्वीकार करने वाले नहीं हैं।”

समाजवादी पार्टी (सपा) के राम गोपाल यादव ने आरोप लगाया कि अगस्त में अन्ना हजारे का अनशन तुड़वाने के लिए सरकार ने जो प्रस्ताव पारित करवाया था कि उससे पीछे हटकर वह संसद के साथ धोखा कर रही है। उन्होंने हालांकि यह भी कहा कि अन्ना हजारे को अपने जनलोकपाल विधेयक के ‘प्रत्येक शब्द’ को स्वीकार करने के लिए जिद नहीं करनी चाहिए।

वहीं, तेलुगू देशम पार्टी (तेदेपा) के के. येरन नायडू ने कहा कि सभी दलों को टीम अन्ना का जनलोकपाल विधेयक स्वीकार करना चाहिए। कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी व पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि मां-बेटे भ्रष्टाचार से लड़ने को लेकर गम्भीर नहीं हैं।

मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) की वृंदा करात ने कहा कि उनकी पार्टी न केवल सरकार के भीतर, बल्कि निजी क्षेत्र में भी भ्रष्टाचार से मुकाबले के लिए प्रभावी लोकपाल पक्ष में है। उन्होंने कहा कि निजी क्षेत्र में भ्रष्टाचार से लड़ना भी समान रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि वे स्वतंत्रतापूर्वक राष्ट्रीय सम्पदा ‘लूट’ रहे हैं। हमें कॉरपोरेट जगत में भ्रष्टाचार पर भी ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के महासचिव ए.बी. बर्धन ने कहा कि वह हालांकि कई मुद्दों पर अन्ना पक्ष के साथ हैं, लेकिन जनलोकपाल विधेयक को पूरी तरह स्वीकार किए जाने को लेकर सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा दिखाई जा रही सख्ती के खिलाफ हैं। उन्होंने सामाजिक कार्यकर्ताओं से लचीला रुख अपनाने को कहा। 

उधर प्रभावी लोकपाल के लिए अन्ना के अनशन को खारिज करते हुए कांग्रेस ने कहा कि उन्होंने धर्य नहीं रखा। विधेयक पर संसद को अभी निर्णय लेना है, इसलिए उनका यह कदम ‘संसद का अपमान’ है।

कांग्रेस नेताओं ने जंतर मंतर पर चली बहस में शामिल होने पर अन्य राजनीतिक दलों की भी आलोचना की। कांग्रेस प्रवक्ता राशिद अल्वी ने संवाददाताओं से कहा, “मुझे यह कहने में कोई हिचकिचाहट नहीं है कि अन्ना संसद का अपमान कर रहे हैं।” उन्होंने कहा, “लोकपाल विधेयक पर रिपोर्ट पेश कर दी गई है। उस पर बहस होनी है और फैसला लिया जाना है। कानून जंतर मंतर पर नहीं बनाया जा सकता।”

इस बीच, सरकार के प्रवक्ता अश्विनी कुमार ने कहा कि यह अनशन ‘उचित समय से पूर्व’ किया गया। कुमार ने कहा, “मेरी समझ से अन्ना को विधेयक पर संसद में बहस होने तक प्रतीक्षा करनी चाहिए थी। इससे पूर्व आंदोलन और अनशन पूरी तरह गलत है।”

अन्ना हजारे के सहयोगी अरविंद केजरीवाल ने भी राहुल पर जमकर हमला बोला। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी ने चाहा तो संसदीय समिति ने लोकपाल को संवैधानिक दर्जा दिए जाने की सिफारिश कर डाली और हम अपनी मांगों को लेकर लगातार संघर्ष कर रहे हैं लेकिन समिति ने हमारी मांगों की ओर कोई ध्यान नहीं दिया। यहां तक कि प्रधानमंत्री के वादे और संसद के प्रस्ताव तक को कूड़ेदान में डाल दिया गया।

सोशल नेटवर्किं ग वेबसाइट पर प्रतिबंध लगाने की केंद्रीय दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्बल की मंशा पर सवाल उठाते हुए उन्होंने कहा, “फेसबुक और अन्य सोशल नेटवर्किं ग वेबसाइट से हमें अपने आंदोलन को मजबूत करने में काफी मदद मिली, इसलिए उन्होंने इस पर भी प्रतिबंध लगाने की कोशिश की। लेकिन इसके बावजूद देखिए..यहां कितने लोग एकत्र हुए हैं।”

अन्ना हजारे की अन्य सहयोगी किरण बेदी ने संसद से अनुरोध किया कि वह लोकपाल विधेयक पर स्थायी समिति की सिफारिशों को नामंजूर कर दे और जनता की आवाज सुने।

Rate this post

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here