नई दिल्ली ।। लोकसभा में नेता विपक्ष सुषमा स्वराज ने प्रभावी लोकपाल की मांग को लेकर अनशन पर बैठे सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे के जन लोकपाल विधेयक के तीनों प्रमुख बिंदुओं पर सहमति जताई है।

अन्ना की पहली मांग एक ही कानून के मुताबित केंद्र में लोकपाल की तरह राज्यों में लोकायुक्तों को नियुक्त करना है। सुषमा ने कहा कि यह कहना कि लोकपाल एवं लोकायुक्त का एक ही कानून के अंतर्गत निर्माण असम्भव है, गलत है। सुषमा ने याद दिलाते हुए कहा कि “जब 1968 में पहला लोकपाल विधेयक बना था, तब उसका नाम लोकपाल एवं लोकायुक्त विधेयक था।”

नेता विपक्ष ने कहा, “संविधान की धारा 252 के अंतर्गत यह प्रावधान है कि केंद्र सरकार चाहे तो दो या अधिक राज्यों की सहमति से ऐसा कानून बनाया जा सकता है, जो सहमति जताने वाले राज्यों पर लागू हो।”

अन्ना की दूसरी मांग शिकायत निवारण प्रकोष्ठ के निर्माण से सहमति जताते हुए सुषमा ने कहा कि “यह कानून नागरिक अधिकार के आधार पर निर्मित लोकसेवा प्रदाय गारंटी अधिनियम मध्य प्रदेश में पहले से लागू है। इसके अलावा इस तरह के कानून हिमाचल प्रदेश, बिहार एवं पंजाब में पहले से लागू हैं।” सुषमा ने कहा कि “इस तरह का कानून अवश्य बनना चाहिए और समय पर काम न होने पर सम्बंधित कर्मचारियों के वेतन में कटौती कर पीड़ित को भुगतान करना चाहिए।”

अन्ना की तीसरी मांग कि सभी कर्मचारियों को लोकपाल के दायरे में लाना चाहिए पर सुषमा ने कहा कि “आम जनता के मन में बड़े-बड़े भ्रष्टाचार के होने से क्रोध अवश्य उत्पन्न होता है, लेकिन उनको रोज सामना करना पड़ता है, तंत्र के निचले स्तर में व्याप्त भ्रष्टाचार का।”

अन्ना की इस मांग पर सहमति जताते हुए सुषमा ने कहा, “अन्ना के आंदोलन में दिनचर्या में भ्रष्टाचार का सामना करने वाले आम लोगों ने शिरकत की है। उन्हें लगा है कि जन लोकपाल विधेयक उन्हें छोटे स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार से मुक्ति दिलाएगा। अगर लोकपाल के दायरे में निचले स्तर के कर्मचारियों को नहीं लाया जाएगा, तो आम नागरिक अपने को ठगा महसूस करेगा।”

इससे पहले लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज ने शनिवार को जन लोकपाल विधेयक के प्रमुख मुद्दों पर सहमति व्यक्त की। इन प्रमुख मुद्दों में प्रधानमंत्री, केंद्रीय जांच ब्यूरो [सीबीआई], सांसदों के आचरण, समस्त सरकारी कर्मचारियों को लोकपाल के दायरे में लाया जाना शामिल है। स्वराज ने न्यायपालिका में पारदर्शिता के लिए अलग व्यवस्था का समर्थन किया।

भारतीय जनता पार्टी [भाजपा] की नेता सुषमा ने लोकपाल विधेयक पर लोकसभा में जारी चर्चा में हिस्सा लेते हुए कहा कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन [राजग] सरकार के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने लोकपाल के दायरे में आने की इच्छा जाहिर की थी। मौजूदा प्रधानमंत्री ने भी यह इच्छा जाहिर की है। लिहाजा प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि सीबीआई के उपयोग और दुरुपयोग को लेकर तमाम विवाद सामने आए हैं। लिहाजा सीबीआई को भी लोकपाल के दायरे में लाया जाना चाहिए। सुषमा ने संसद में सांसदों के आचरणों को भी लोकपाल के दायरे में लाए जाने का समर्थन किया। इस बीच रामलीला मैदान में सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे का अनशन 12वें दिन जारी है।

ज्ञात हो कि अन्ना हजारे ने संसद की ओर से अनशन तोड़ने के लिए की गई अपील के जवाब में कहा था कि यदि संसद में उपरोक्त तीनों मुद्दों पर सहमति बनती है तो वह अनशन तोड़ देंगे, और बाकी लोकपाल अधिनियम पारित होने तक रामलीला मैदान में अपने समर्थकों के साथ डटे रहेंगे।

इसके पहले स्वराज ने कहा कि लोकपाल विधेयक पिछले 42 वर्षो से लटका हुआ है। अब समय आ गया है, जब सदन को प्रभावी लोकपाल विधेयक पारित कर इतिहास रचना चाहिए।

स्वराज ने सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे के अनशन का जिक्र करते हुए कहा कि इस आंदोलन के कारण उपजी समस्या से निपटने के लिए सरकार ने सर्वदलीय बैठक बुलाई। लेकिन बैठक में जो प्रस्ताव पारित हुआ, सरकार उस दिशा में आगे नहीं बढ़ी।

स्वराज ने कहा कि गतिरोध तोड़ने के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने जो पहल की, कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने स्वायत्तशासी लोकपाल का सुझाव देकर उसपर पानी फेर दिया।

स्वराज ने यह भी आरोप लगाया कि सदन के नियमों को दरकिनार करते हुए राहुल को शून्य काल के दौरान इतना लम्बा वक्तव्य देने की अनुमति दी गई। स्वराज ने पूछा, “शून्य काल मुद्दे उठाने के लिए है, व्याख्यान देने के लिए नहीं। राहुल के लिए नियम क्यों तोड़े गए?”

स्वराज ने कहा, “शून्य काल में किसी मुद्दे को उठाने के लिए तीन मिनट दिए जाते हैं, राहुल ने 15 मिनट लिए।”

 

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