नई दिल्ली ।। लोकपाल विधेयक के प्रारूप पर सर्वसम्मति बनाने के मकसद से बुधवार को बुलाई गई सर्वदलीय बैठक का नतीजा सिफर निकला। अलबत्ता यह संदेह जरूर पैदा हो गया कि यह बहुप्रतिक्षित विधेयक संसद के मौजूदा सत्र में आ भी पाएगा या नहीं, जिसे लेकर टीम अन्ना बार-बार अनशन पर जाने की चेतावनी देती आ रही है।

लोकपाल विधेयक से जुड़े विवादास्पद मुद्दों पर चर्चा के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बुधवार शाम सर्वदलीय बैठक बुलाई थी जो तकरीबन तीन घंटे चली और करीब 10 बजे खत्म हुई। बैठक के बाद विभिन्न दलों के नेताओं की ओर से आए बयान यह संकेत दे गए कि केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को लोकपाल के दायरे में लाने सहित अन्य विवादास्पद मुद्दों पर कोई सहमति नहीं बन पाई। संकेत यह भी मिले कि यह विधेयक इस सत्र में आ भी पाएगा कि नहीं।

सूत्रों के मुताबिक सरकार ने राजनीतिक दलों के नेताओं से कहा है कि वह आंतरिक बातचीत के बाद अगले कुछ दिनों में उन्हें अपने अगले रुख से अवगत कराएगी। सूत्रों का कहना है कि अधिकांश राजनीतिक दलों ने इस बैठक में वही राय रखी जो उन्होंने स्थायी समिति के समक्ष रखी थी। शिव सेना ने तो लोकपाल के औचित्य पर ही सवाल उठाए।

पूर्व केंद्रीय मंत्री व लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के अध्यक्ष रामविलास पासवान ने बैठक के बाद संवाददाताओं से बातचीत में कहा, “लोकपाल विधेयक इसी सत्र में आएगा, ऐसी कोई प्रतिबद्धता सरकार की ओर से नहीं जताई गई।”

उन्होंने कहा, “राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सहित कई दलों के नेताओं ने यह बात जरूर कही कि लोकपाल विधेयक पर सरकार को जल्दबाजी में कोई फैसला नहीं लेना चाहिए। क्योंकि यह ऐसा विधेयक है, इससे बहुत कुछ प्रभावित होने वाला है।”

हालांकि थोड़ी ही देर बाद लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने ट्विटर पर पोस्ट किए अपने एक संदेश में कहा कि उनकी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) चाहती है कि लोकपाल विधेयक संसद के चालू सत्र में ही लाए।

सुषमा ने ट्विटर पर जारी संदेश में कहा, “हम चाहते हैं कि सरकार संसद के इसी सत्र में लोकपाल विधेयक लेकर आए।”

उन्होंने कहा, “विवादास्पद मुद्दों पर हमने अपनी वही राय दोहराई जो स्थायी समिति की बैठक में हमारे सदस्यों ने नोट के जरिए कही थी।”

मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के नेता सीताराम येचुरी ने कहा कि उनकी पार्टी प्रधानमंत्री, निचले स्तर के अफसरों और सीबीआई को लोकपाल के दायरे में रखने के पक्ष में है।

शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) के नेता सुखदेव सिंह ढींढसा ने कहा कि उन्होंने सीबीआई को एक स्वतंत्र संस्था बनाए जाने की मांग की।

उन्होंने कहा कि सुषमा स्वराज और अन्य विपक्षी दलों के नेताओं ने प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में रखे जाने की मांग की।

बीजू जनता दल (बीजद) के प्यारमोहन महापात्रा ने कहा कि उनकी पार्टी ने सीबीआई को स्वतंत्र और निष्पक्ष बनाना सुनिश्चित करने की मांग की।

इससे पहले, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बैठक आरम्भ होने पर अपने उद्बोधन में कहा कि केंद्र सरकार चाहती है कि सभी राजनीतिक दलों के बीच आम सहमति से संसद के इसी सत्र में प्रभावी लोकपाल विधेयक पारित कराने के लिए सभी कोशिशें हों।

प्रधानमंत्री ने अपने सम्बोधन में कहा, “मैं निजी तौर पर यह चाहता हूं कि लोकपाल विधेयक सभी राजनीतिक दलों की आम सहमति से पारित होना चाहिए। यह राजनीति करने का विषय नहीं होना चाहिए।”

उन्होंने कहा, “यह मौका है जहां हमें राष्ट्र हित को सर्वोपरि रखना है। सरकार चाहती है कि संसद के इसी सत्र में लोकपाल विधेयक को पारित करने के लिए हमें सभी प्रयास करने चाहिए, जो आम सहमति पर आधारित हो।”

प्रधानमंत्री ने कहा, “सरकार एक अच्छा व प्रभावी लोकपाल विधेयक क्रियान्वित करने को लेकर प्रतिबद्ध है, जिससे भ्रष्टाचार रूपी कैंसर को खत्म किया जा सके और इससे लोक प्रशासनिक तंत्र की दक्षता पर भी नकारात्मक प्रभाव न पड़े।”

प्रधनमंत्री ने कहा, “आप सभी ने समिति की सिफारिशें देखी हैं। यह इंगित करना अब आप सभी पर निर्भर करता है कि समिति की सिफारिशें संसद की भावना के कितने अनुरूप है और इसके प्रावधान कितने सम्भव व प्रभावकारी हो सकते हैं।”

उधर, सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे और उनकी टीम ने साफ-साफ शब्दों में कहा कि वह अपनी मांगों से पीछे हटने वाली नहीं है। टीम अन्ना 27 दिसम्बर को अनशन की तैयारी में भी जुट गई है। दिल्ली में पड़ रही ठंड को देखते हुए उसका अनशन दिल्ली की बजाए मुम्बई में भी हो सकता है।

अन्ना हजारे ने तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी से आग्रह किया कि उन्हें प्रभावी लोकपाल विधेयक के लिए केंद्र सरकार पर दबाव बनाना चाहिए।

अन्ना ने खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के मुद्दे पर सख्त रुख अपनाने के लिए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की प्रशंसा करते हुए कहा, “मैं उनसे अनुरोध करता हूं कि प्रभावी लोकपाल विधेयक के मुद्दे पर भी वह इसी तरह का रुख अपनाएं।”

अन्ना ने कहा, “एफडीआई के मुद्दे पर उन्होंने देश के लिए एक शानदार काम किया है। उनके निर्णय ने कई छोटे व्यापारियों को बचा लिया है।”

अन्ना ने शिकायत निवारण विधेयक-2011 को मंत्रिमंडल की मंजूरी पर आपत्ति जताई और इसे ‘सदन की भावना’ का उल्लंघन बताया और कहा कि यह उनके कार्यकर्ताओं को स्वीकार्य नहीं है।

अन्ना ने कहा, “जब मैं रामलीला मैदान में अनशन पर था, तब प्रधानमंत्री ने कुछ शर्तो पर अनशन समाप्त करने की मुझसे अपील की थी, जिसमें सिटिजन चार्टर को लोकपाल के दायरे में रखे जाने की शर्त भी शामिल थी। लेकिन अब सरकार ने एक नया विधेयक पारित किया है, जो सदन की भावना के खिलाफ है।”

अन्ना ने कहा, “सिटिजन चार्टर को एक अलग कानून के तहत नहीं लाया जाना चाहिए। यह ठीक नहीं है।”

ज्ञात हो कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में मंगलवार को हुई मंत्रिमंडल की बैठक में न्यायिक मानक एवं जवाबदेही विधेयक, शिकायत निवारण विधेयक और पर्दाफाश करने वालों की सुरक्षा से सम्बंधित विधेयक को मंजूरी दे दी गई।

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