भोपाल ।। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में हुई गैस त्रासदी के लिए जिम्मेदार डाओ केमिकल द्वारा लंदन ओलम्पिक के स्टेडियम से विज्ञापन हटाए जाने के फैसले से गैस पीड़ित संतुष्ट नहीं हैं।

वे डाओ को प्रायोजक की सूची से हटाए जाने की मांग पर अड़े हुए हैं। लंदन में होने वाले वर्ष 2012 के ओलम्पिक के लिए डाओ केमिकल को प्रायोजक बनाया गया है। डाओ वह कंपनी है, जिसने भोपाल हादसे के लिए जिम्मेदार यूनियन कार्बाइड को अधिग्रहित किया है। डाओ को ओलम्पिक का प्रायोजक बनाए जाने का भोपाल के गैस पीड़ितों के संगठनों से लेकर दुनिया भर के संगठन विरोध कर रहे हैं।

दुनिया भरे में हो रहे विरोध के चलते ही डाओ केमिकल लंदन ऑलंपिक के स्टेडियम में लगने वाले विज्ञापन को हटाने के लिए राजी हो गया है। गैस पीड़ित इससे संतुष्ट नहीं हैं। भोपाल ग्रुप फॉर इंफोर्मेशन एण्ड एक्शन के सतीनाथ षडंगी का कहना है कि डाओ ने विज्ञापन हटाने का फैसला कर अपने अपराध को स्वीकार कर लिया है। लिहाजा उसे मानवीय व पर्यावरणीय अपराध को स्वीकार कर मुआवजा देना चाहिए।

षडंगी ने कहा है कि डाओ अदालतों से तो भाग सकता है मगर जनता की अदालत से उसका भाग पाना मुश्किल है। यही कारण है कि उसे झुकना पड़ा है, गैस पीड़ितों के हित की लड़ाई में यह छोटी ही सही मगर महत्वपूर्ण जीत है जो उन्हें और उत्साहित करने वाली है।

भोपाल गैस पीड़ित सहयोग संगठन की साधना कार्णिक ने डाओ द्वारा स्टेडियम से विज्ञापन हटाने के फैसले को नाकाफी करार दिया है। वह कहती हैं कि ओलम्पिक आयोजन समिति की ऐसी क्या मजबूरी है जिसके चलते डाओ को प्रायोजक की सूची से नहीं हटाया जा पा रहा है। इसका खुलासा होना चाहिए। डाओ नरसंहार का दोषी है और उसे प्रायोजक बनाया जाना दुनिया के सबसे बडे खेल आयोजन ओलम्पिक की खेल भावना के विपरीत है।

उनका कहना है कि डाओ द्वारा विज्ञापन हटा लेने से मामला खत्म नहीं हो जाता है, जरुरी है कि डाओ को प्रायोजक की सूची से हटाया जाए। विज्ञापन हटाने से उससे मिलने वाली मदद तो जारी ही रहेगी। आशय साफ है कि ओलम्पिक के आयोजन में डाओ पीछे खड़ा रहेगा।

मालूम हो कि डाओ को ओलम्पिक का प्रायोजक बनाए जाने से भोपाल में लगातार आंदोलन व प्रदर्शन का दौर जारी है। यहां पूर्व ओलम्पिक खिलाड़ियों ने भी रैली निकालकर डाओ का विरोध किया था। इसी तरह प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी विरोध दर्ज करा चुके हैं।

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