अद्दू (मालदीव) ।। वैश्विक अर्थव्यवस्था पर छाए संकट का हवाला देते हुए भारत ने गुरुवार को दक्षिण एशियाई सहयोग संगठन (दक्षेस) के अल्प विकस्ति देशों के लिए व्यापार के क्षेत्र में जहां रियायत की घोषणा की वहीं सदस्य देशों को आपसी मतभेद भुलाकर अधिक व्यापार और सम्पर्क के जरिए क्षेत्रीय एकता को नई ऊंचाई पर पहुंचाने की दिशा में काम करने का आह्वान किया। 

मालदीव में गुरुवार से शुरू हुए दो दिवसीय दक्षेस शिखर सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने दक्षेस निवेश समझौते के लिए और दक्षिण एशिया में ‘व्यापार सम्बंधों को पूरी तरह सामान्य बनाने’ पर जोर दिया।

प्रधानमंत्री जोर देकर कहा कि भारत के ऊपर ‘विशेष जिम्मेदारी’ है और यह जिम्मेदारी उसकी अर्थव्यवस्था से सम्बंधित है। उन्होंने दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार क्षेत्रीय संधि (साफ्टा) के तहत आने वाले अल्प विकसित देशों के लिए संवेदनशील सूची की वस्तुओं की संख्या वर्तमान 480 से घटाकर 25 करने की घोषणा की।

साफ्टा समझौते के तहत इसके सदस्य देशों को अपनी ‘संवेदनशील सूची’ बनाने की अनुमति है और सूची में शामिल वस्तुओं पर रियायत नहीं दी जाती है। लेकिन सूची में कटौती करने से अब बांग्लादेश, भूटान और नेपाल जैसे अल्प विकसित देशों की भारतीय बाजारों तक पहुंच और बढ़ जाएगी।

गैर-अल्प विकसित देशों में भारत ने संवेदशनशील वस्तुओं की सूची में 865 वस्तुओं जबकि पाकिस्तान ने 1169 को रखा है। अन्य देशों में श्रीलंका ने 1065 वस्तुओं, बांग्लादेश ने 1254, भूटान ने 157, मालदीव ने 671 और नेपाल ने 1313 वस्तुओं को संवेदनशील सूची में रखा है।

उन्होंने कहा, “सूची में से हटाई गई सभी वस्तुओं पर तत्काल प्रभाव से शून्य आधार सीमा शुल्क की सुविधा दी जाएगी।” प्रधानमंत्री की इस घोषणा पर सदस्य देशों ने प्रसन्नता जाहिर की।

मालदीव के सुदूर दक्षिण स्थित अतोल द्वीप में दक्षेस के 17वें शिखर सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए मनमोहन सिंह ने क्षेत्रीय एकता के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने कहा, “क्षेत्र में शांति, समृद्धि और सहयोग बढ़ाने के लिए दक्षेस को एक प्रभावी व्यवस्था बनाने में भारत अपनी क्षमता के अनुसार हरसम्भव मदद करेगा।”

मनमोहन सिंह ने कहा, “हमारे मतभेदों को दूर करने के लिए दक्षेस हमें एक महत्वपूर्ण मंच उपलब्ध कराता है।”

उन्होंने कहा, “हमें काफी लम्बी दूरी तय करनी है लेकिन मुझे विश्वास है कि निरंतर प्रयासों से हम अपनी वास्तविक क्षमता को प्राप्त कर सकते हैं। हमें एक दूसरे का विश्वास करना और एक-दूसरे से सीखना है।”

अपने 15 मिनट के सम्बोधन में प्रधानमंत्री ने कहा, “हमारे देशों की सुरक्षा और स्थिरता एक-दूसरे से जुड़ी हुई है और हम में से कोई भी अलग-थलग होकर समृद्ध नहीं हो सकता। हम जिन समस्याओं का सामना करते हैं उन्हें हम अपनी महात्वाकांक्षाओं और सपनों के रास्ते में नहीं आने देंगे।”

इसके अलावा प्रधानमंत्री ने अंतर-क्षेत्रीय एकता को बढ़ावा देने के लिए कुछ नई पहल की घोषणा भी कीं।

भारत पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए दक्षेस देशों के शीर्ष पर्यटन संचालकों के एक सम्मेलन की मेजबानी करेगा। इसके अलावा वह दक्षिण एशिया के प्राचीन इतिहास पर एक यात्रा प्रदर्शनी लगाएगा और दक्षेस देशों के छात्रों को छात्रवृत्ति उपलब्ध कराएगा।

दक्षेस देशों की अर्थव्यवस्था को यूरोजोन मंदी के संदर्भ में रखते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि यह शिखर सम्मेलन ऐसे समय में हो रहा है जब वैश्विक अर्थव्यवस्था पर संकट के बादल हैं। उन्होंने उम्मीद जताई कि विश्व के नेता इस संकट से निपटने में बुद्धिमता का परिचय देंगे।

प्रधानमंत्री ने कहा कि दक्षिण एशियाई देश एक दूसरे से लाभान्वित हो सकते हैं। उन्होंने दक्षेश देशों के बीच सम्पर्क और बढ़ाने के लिए क्षेत्रीय वायु, रेल और वाहन सेवाओं पर समझौते की सलाह दी।

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