नई दिल्ली ।। देशभर में मंगलवार को इस्लामी मुहर्रम महीने के 10वें दिन मातमी जुलूस निकालकर 1,400 साल पहले इराक के कर्बला में शहीद हुए पैगम्बर मोहम्मद के नवासे हुसैन मोहम्मद को याद किया गया।

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में मुस्लिम समुदाय के सैकड़ों लोगों ने विभिन्न स्थानों पर आत्मज्ञान के दिन के रूप में प्रचलित यऊम-ए-अशूरा नाम का जुलूस निकाला। मुहर्रम इस्लामी कैलेंडर की महत्वपूर्ण तिथियों में से एक है। मुस्लिम सम्प्रदाय का मानना है कि कर्बला की घटना के साथ-साथ इस दिन इस्लामी इतिहास में कई महत्वपूर्ण घटनाएं हुई थीं।

देशभर में शिया और सुन्नी समाज के लाखों पुरुषों और महिलाओं ने हुसैन की शहादत की याद में हाथ में काले झंडे लेकर और काले कपड़े पहने विलाप करते हुए और अपनी छाती पीटते हुए मातमी जुलूस निकाला। 

पुलिस ने इस अवसर पर राजधानी में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए थे। 

दिल्ली पुलिस के प्रवक्ता राजन भगत ने आईएएनएस को बताया, “हमने मुहर्रम के जुलूस के लिए प्रत्येक वर्ष की तरह इस वर्ष भी पर्याप्त सुरक्षा इंतजाम किए। ” 

जुलूस क श्मीरी गेट स्थित शिया जामा मस्जिद से उसी क्षेत्र में स्थित पुंजा शरीफ के बीच तथा ऐतिहासिक जामा मस्जिद के नजदीक चितिकुआलम में पहाड़ी भोजला से लेकर लोदी रोड के नजदीक जोरबाग स्थित कर्बला के बीच निकले गए। जुलूस का समापन दोपहर बाद हुआ। 

ऐतिहासिक शाही मस्जिद फतेहपुरी और दक्षिण दिल्ली में स्थित ख्वाजा निजामुद्दीन औलिया की पवित्र दरगाह में खास नमाज का आयोजन किया गया। इन स्थलों पर लोगों ने हुसैन को श्रद्धांजलि दी। 

देश के अन्य राज्यों उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में भी जुलूस निकाला गया।

श्रीनगर में सुरक्षा कारणों के मद्देनजर जम्मू एवं कश्मीर सरकार ने वर्ष 1990 से जुलूस पर रोक लगाई हुई है। प्रदेश के अंदरूनी इलाकों में हालांकि शिया समाज के लोग छोटा सा जुलूस निकालते हैं। 

संसार में पाकिस्तान और इंडोनेशिया के बाद भारत मुस्लिमों की आबादी के मामले में 14 करोड़ के साथ तीसरे स्थान पर है। 

मुहर्रम को शोक का दिन मानते हुए मुस्लिम सम्प्रदाय के लोग स्वैच्छिक उपवास रखते हैं, दान करते हैं और हुसैन की याद में नमाज अदा करते हैं। 

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