नई दिल्ली ।। योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने सोमवार को कहा कि सरकार के बीच गरीबी रेखा से नीचे के लोगों को परिभाषित करने के मुद्दे पर एक सहमति बन गई है।

आयोग की गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बसर करने वालों की परिभाषा पर सामाजिक कार्यकर्ता अपना विरोध जता रहे थे। विरोध करने वालों में सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद भी शामिल है। विरोध योजना आयोग द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में दायर उस हलफनामे के बाद शुरू हुआ है, जिसमें कहा गया है कि शहरी इलाकों के लिए गरीबी रेखा 965 रुपये प्रति व्यक्ति मासिक आय (लगभग 32 रुपये प्रतिदिन) पर निर्धारित की जा सकती है। जबकि ग्रामीण इलाके के लिए गरीबी रेखा 781 रुपये प्रति व्यक्ति मासिक (लगभग 26 रुपये प्रतिदिन) आय बताई गई है।

अहलूवालिया ने यहां योजना भवन में केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश से मुलाकात के बाद संकेत दिया कि गरीबी रेखा की नई परिभाषा जल्द ही पेश की जाएगी। उन्होंने कहा, “हमारे बीच इस मुद्दे पर एक सहमति बनी है। रमेश मेरे साथ एक संवाददाता सम्मेलन को सम्बोधित करेंगे, जहां हम सहमति का ब्योरा प्रस्तुत करेंगे।”

रमेश ने अहलूवालिया से सहमति जताई और कहा, “गरीबी रेखा और ग्रामीण विकास कार्यक्रम के बीच सम्बंध पर अहलूवालिया के साथ मेरी एक घंटे बातचीत हुई। हमारे बीच एक व्यापक सहमति बनी है।”

गरीबी रेखा के बारे में यह स्पष्टीकरण ऐसे समय में आया है, जब अहलूवालिया ने एक दिन पहले रविवार को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मुलाकात की थी और इस मुद्दे पर उन्हें जानकारी दी थी।

हलफनामे के अनुसार, गरीबी रेखा के नीचे (बीपीएल) के लाभों के हकदार गरीबों की संख्या देश में 0.74 करोड़ आकी गई है।

पता चला है कि कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने भी गरीबी रेखा की इस परिभाषा पर चिंता जाहिर की है। राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की सदस्य अरुणा राय और एन.सी. सक्सेना ने भी गरीबी रेखा की इस परिभाषा की तीखी आलोचना की है।

सक्सेना ने कहा है कि केवल कुत्ते और जानवर ही 32 रुपये में दिन गुजार सकते हैं। उन्होंने कहा कि इस राशि में जीवन यापन करने वाले लोग अतिशय गरीब हैं।

Rate this post

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here