न्यूयार्क ।। केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने 2जी स्पेक्ट्रम मामले में अपने मंत्रालय से प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजे गए पत्र के बारे में सीधी टिप्पणी करने से इंकार कर दिया है।
पत्र में कहा गया है कि तत्कालीन वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम यदि चाहते तो वर्ष 2008 में टेलीकॉम ऑपरेटरों के लिए 2 जी स्पेक्ट्रम की नीलामी की जा सकती थी।
एशिया सोसायटी की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम में मुखर्जी ने बुधवार शाम को यहां स्वीकार किया कि ऐसा पत्र उनके कार्यालय द्वारा लिखा गया था लेकिन उन्होंने इस बारे में कोई टिप्पणी करने से इंकार कर दिया। उन्होंने कहा कि मामला न्यायालय के विचाराधीन है।
उन्होंने कहा, “आज एक सनसनीखेज खबर सामने आई है और यह सूचना के अधिकार के तहत पता चला है। वित्त मंत्रालय द्वारा प्रधानमंत्री कार्यालय को एक पत्र भेजा गया था। किसी ने सूचना के अधिकार के तहत उस पत्र की प्रति हासिल की है।”
उन्होंने कहा, “और उसका इस्तेमाल किया जा रहा है, इसे कानूनी तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है या नहीं यह अलग मसला है -लेकिन इस मामले में सच्चाई यह है कि किसी ने इसे एक विशेष मामले में साक्ष्य के रूप में पेश किया है। मामला न्यायालय के पास विचाराधीन है और न्यायालय इसकी सुनवाई कर रहा है।”
उन्होंने यह टिप्पणी भारत में अमेरिका के पूर्व राजदूत फ्रैंक वाइजनर के उस सवाल के जवाब में की कि भारत भ्रष्टाचार से निपटने के लिए क्या कर रहा है।
इससे पहले भारत निवेश मंच को सम्बोधित करते हुए मुखर्जी ने इस मसले पर मीडिया के किसी भी सवाल का जवाब देने से इंकार कर दिया था।
केंद्रीय वित्त मंत्रालय द्वारा प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजे गए पत्र से खुलासा हुआ है कि वर्तमान केंद्रीय गृह मंत्री पी. चिदम्बरम अगर चाहते तो वर्ष 2008 में स्पेक्ट्रम की नीलामी हो सकती थी।
पत्र में केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने कहा है कि नीलामी पर जोर देकर चिदम्बरम स्पेक्ट्रमों को पुरानी कीमत पर बेचने से रोक सकते थे, जिससे हजारों करोड़ रुपये के नुकसान से बचा जा सकता था।
इस पत्र को केंद्रीय वित्त मंत्रालय में उप सचिव ने तैयार किया था और उसे 25 मार्च को प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजा गया। एक सामाजिक कार्यकर्ता विवेक गर्ग ने प्रधानमंत्री कार्यालय में आवेदन देकर इस पत्र की प्रति हासिल की है।