नई दिल्ली ।। सर्वोच्च न्यायालय ने देश में परमाणु संयंत्रों की सुरक्षा को लेकर आशंकित दो गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) से सोमवार को कहा कि सुरक्षा और किफायत के लिए स्वतंत्र नियामकों के गठन के लिए वे प्रधानमंत्री या परमाणु ऊर्जा विभाग से मिलें।

सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एस. एच. कपाड़िया और न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की खंडपीठ ने यह बात ‘कॉमन कॉज’ और ‘सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन’ के वकील प्रशांत भूषण से कही।

इससे पहले भूषण ने सर्वोच्च न्यायालय से प्रस्तावित परमाणु संयंत्रों की सुरक्षा और लागत पर सरकार को एक स्वतंत्र नियामकीय प्राधिकरण गठित करने के लिए निर्देश देने की मांग की थी।

इस पर अदालत ने कहा कि यदि वह किसी खास संयंत्र के बारे में कहना चाहते हैं तो उस राज्य के उच्च न्यायालय में जा सकते हैं, जहां वह संयंत्र स्थापित किया जा रहा है।

भूषण ने अदालत से कहा कि परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष ए. गोपालकृष्णन ने प्रधानमंत्री को परमाणु ऊर्जा संयंत्र की सुरक्षा को लेकर कई खत भेजे हैं। इसके बाद अदालत ने सुनवाई शुक्रवार तक के लिए स्थगित कर दी।

अदालत ने भूषण से पूछा कि क्या उन्होंने इस मामले को परमाणु ऊर्जा विभाग के सामने उठाया है।

अदालत ने कहा कि वह गैर सरकारी संस्थाओं के विचार के खिलाफ नहीं है, लेकिन वह चाहती है कि संस्थाएं प्रक्रिया का पालन करें और पहले मामले को सम्बद्ध विभाग के सामने उठाए।

भूषण ने कहा कि प्रधानमंत्री द्वारा बताई गई नियामकीय प्रक्रिया परमाणु ऊर्जा विभाग और परमाणु ऊर्जा आयोग से स्वतंत्र नहीं है।

इस पर अदालत ने जानना चाहा कि क्या इस तरह के स्वतंत्र नियामक के गठन का संवैधानिक प्रावधान है।

भूषण ने अदालत से कहा कि अमेरिका और यूरोपीय देश अब परमाणु ऊर्जा संयंत्र नहीं लगा रहे हैं। जापान के फुकुशिमा संयंत्र की बर्बादी के बाद स्विट्जरलैंड ने परमाणु ऊर्जा पर पूर्ण रोक लगाने की घोषणा की है।

परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की सुरक्षा को लेकर कुछ विशेषज्ञों की चिंता से अदालत को अवगत कराने पर अदालत ने कहा कि इस बारे में अलग-अलग राय हैं।

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