नई दिल्ली ।। कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने शुक्रवार को लोकसभा में कहा कि देश से भ्रष्टाचार मिटाने के लिए राजनीतिक इच्छा शक्ति की जरूरी है। शून्य काल में भ्रष्टाचार पर चल रही चर्चा में हिस्सा लेते हुए राहुल गांधी ने भ्रष्टाचार के खिलाफ देश को जगाने के लिए सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे को धन्यवाद दिया।

राहुल ने कहा कि “मुझे खुशी है कि आज देश भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने के लिए जागृत हुआ है, लेकिन सिर्फ लोकपाल से भ्रष्टाचार समाप्त नहीं हो सकता।” राहुल ने जोर देकर कहा कि “इस देश से भ्रष्टाचार मिटाने के लिए दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत है।”

उन्होंने कहा कि ऐसी धारणा है कि “जन लोकपाल विधेयक पास होने से भर से भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा, लेकिन मुझे इस पर गंभीर संदेह है। अगर लोकपाल भ्रष्ट हो गया तो फिर क्या होगा, इसलिए क्यों न हम लोकपाल को चुनाव आयोग की तरह एक मजबूत संवैधानिक संस्था बनाएं।” 

राहुल ने कहा कि “खनन और चुनावों से भ्रष्टाचार को दूर करना होगा।” उन्होंने कहा कि “आज जरूरत है कि अधिक से अधिक युवा चुनकर आएं। इसके लिए चुनाव में सरकारी फंडिंग पर भी विचार किया जाना चाहिए।”

भ्रष्टाचार पर छिड़ी चर्चा के बाद राहुल ने पहली बार अपनी चुप्पी तोड़ी है। उन्होंने कहा कि “यह विधेयक भ्रष्टाचार मिटाने की दिशा में मात्र एक घटक भर है।” इसके बाद सदन में विपक्ष ने शोर-शराबा शुरू कर दिया और विपक्षी सदस्य अपनी सीटों से खड़े हो गए। राहुल को कुछ समय तक अपना वक्तव्य रोकना पड़ा। उसके बाद उन्होंने कहा कि “भ्रष्टाचार मिटाने का कोई आसान समाधान नहीं है।”

राहुल ने यह भी सुझाव दिया कि लोकपाल को निर्वाचन आयोग जैसा संवैधानिक दर्जा दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि “अन्ना हजारे जी ने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर लोगों को जगाया।” राहुल ने इसके लिए अन्ना हजारे को धन्यवाद दिया।

          लोकसभा में राहुल द्वारा दिये गये भाषण को नीचे विस्तार से पढ़ें        

माननीय अध्यक्षा जी, पिछले कुछ दिनों की घटनाओं से मैं बहुत व्यथित हूं। मौजूदा हालत के कुछ पहलुओं से मैं बहुत आहत हुआ हूं।

हम सब भ्रष्टाचार की व्यापकता को जानते हैं। भ्रष्टाचार हर स्तर पर है। गरीब व्यक्ति पर इसका सबसे ज्यादा बोझ पड़ता है, किन्तु इस बोझ से हर भारतीय छुटकारा पाना चाहता है। गरीबी को मिटाने के लिए भ्रष्टाचार से लड़ना उतना ही जरूरी है, जितना कि मनरेगा या भूमि अधिग्रहण जैसा कानून बनाना है। यह हमारे देश के तरक्की और प्रगति के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।

माननीय अध्यक्षा जी, महज इच्छा हमारे जीवन को भ्रष्टाचार से मुक्त नहीं कर सकती। भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए एक व्यापक रूपरेखा को कार्यान्वित करने और एक संगठित, सर्वसम्मत, राजनीतिक कार्यक्रम को ऊपर से लेकर नीचे तक कार्यान्वित करने की जरूरत होगी। सबसे जरूरी बात यह है कि उसके लिए राजनीतिक इच्छा शक्ति की जरूरत होगी।

माननीय अध्यक्षा जी, पिछले कुछ वर्षो में मैंने देश के कोने-कोने का दौरा किया है। मैं देश के सैकड़ों लोगों से चाहे गरीब हो या अमीर, वृद्ध हो या नौजवान, सशक्त हो या निशक्त, सभी से मिला हूं, जिन्होंने व्यवस्था से मोहभंग को अभिव्यक्त किया है। हमारी व्यवस्था से उपजे रोष को अन्ना जी ने आवाज दी है। मैं इसके लिए उनका धन्यवाद करता हूं।

मैं समझता हूं कि हमारे सामने सही सवाल यह है कि क्या हम जन प्रतिनिधि भ्रष्टाचार के खिलाफ इस सीधी जंग के लिए तैयार हैं? यह सवाल केवल इस गतिरोध के थमने का नहीं है। यह एक बड़ी लड़ाई है। इसके कोई सरल उपाय नहीं हैं। भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए निरन्तर प्रतिबद्धता और गहरी संबद्धता की जरूरत है।

पिछले दिनों की घटनाओं का साक्षी होने पर कदाचित ऐसा प्रतीत होता है कि एक कानून के बन जाने से जैसे पूरे समाज से भ्रष्टाचार मिट जायेगा। मुझे इस बात पर गहरा संदेह है। एक प्रभावकारी लोकपाल कानूनी तौर पर भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने का एक माध्यम है, किन्तु सिर्फ लोकपाल भ्रष्टाचारहीन आचरण के लिए पर्याप्त विकल्प नहीं है। कई प्रभावकारी कानूनों की जरूरत है। ऐसे कानून जो कि कुछ जरूरी मसलों को लोकपाल के साथ ही साथ संबोधित करे-

● चुनाव और राजनीतिक दलों का सरकार द्वारा वित्तीय संचालन।

● सार्वजनिक खरीद में पारदर्शिता।

● भूमि एवं खनन जैसे मामलों का सही नियमन जिसके अभाव में भ्रष्टाचार पनपता है।

● न्यूनतम समर्थन मूल्य, राशन कार्ड और वृद्धावस्था पेंशन जैसे सार्वजनिक वितरण सेवाओं में समस्या निवारण की प्रक्रिया के लिए एक व्यापक तंत्र बनाना।

● कर चोरी से छुटकारे के लिए निरन्तर कर प्रणाली में सुधार।

हम समयबद्ध तरीके से संसदीय प्रक्रिया के माध्यम से दल गत राजनीति से ऊपर उठकर ऐसे कानून बनाने के लिए देश की जनता के प्रति प्रतिबद्ध हैं।

हम एक लोकपाल नियामक की चर्चा करते हैं लेकिन हमारी चर्चा लोकपाल की जवाबदेही और उसके भ्रष्ट होने की स्थिति पर आकर थम जाती है।

माननीय अध्यक्षा जी, हम केंद्रीय चुनाव प्राधिकरण की तरह संसद के प्रति जवाबदेह संवैधानिक लोकपाल के गठन पर चर्चा क्यों नहीं कर सकते? मुझे लगता है कि इस पर गंभीरता से विचार करने का समय आ गया है।

माननीय अध्यक्षा जी, कानून और संस्थान पर्याप्त नहीं है। भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए प्रतिनिधित्वकारी, समावेशी और सुगम लोकतंत्र की जरूरत है। आज़ादी और देश की प्रगति के लिए कई व्यक्तियों ने देश के लोगों को प्रेरित और आंदोलित किया है। किन्तु व्यक्तिगत भावना चाहे कितने भी अच्छे उद्देश्य के लिए हो, उससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया कमजोर नहीं होनी चाहिए। 

यह प्रक्रिया लम्बी और कठिन है, किन्तु उसका लम्बा होना उसके समावेशी और निष्पक्ष होने के लिए जरूरी है कि यह प्रक्रिया एक पारदर्शी और समावेशी माध्यम बने, जिससे विचारों को कानूनी रूप दिया जा सके। चुनी हूई सरकार ही संसद की उच्चता का संरक्षण करती है। नीतिगत घुसपैठ संसदीय उच्चता को नष्ट करेगी और यह लोकतंत्र के लिए बहुत खतरनाक होगा। 

आज प्रस्तावित कानून भ्रष्टाचार के खिलाफ है। कल को ऐसी लड़ाई किसी ऐसे लक्ष्य के प्रति भी हो सकती है, जिसमें कि सबकी सामूहिक सहमति न हो। वह लड़ाई हमारे बहुआयामी समाज और लोकतंत्र पर हमला हो सकता है।

हमारी सबसे बड़ी उपलब्धि हमारा लोकतंत्र है। यह हमारे देश की आत्मा है। मुझे लगता है कि हमें और हमारी राजनीतिक दलों को और अधिक लोकतंत्र की जरूरत है।

मैं राजनीतिक दलों के सरकारी वित्त प्रबन्धन को मानता हूं। मैं युवाओं के सशक्तिकरण को मानता हूं, मैं मानता हूं कि बंद राजनीतिक व्यवस्था के सभी दरवाजे खोल देने चाहिए, ताकि राजनीति और इस सदन में नयी ऊर्जा आ सके। मैं मानता हूं कि लोकतंत्र को गांव-गांव तक पहुंचाना है।

मैं जानता हूं कि इस सदन के सदस्यगण भी मेरी ही तरह लोकतंत्र के प्रति आस्थावान हैं। मैं यह भी जानता हूं कि राजनीतिक मान्यताएं चाहे जो हो, मेरे साथीगण अथक परिश्रम से उन आदर्शो के लिए कार्य करते है, जिससे यह देश बना है। सत्य की तलाश में ऐसा ही एक आदर्श है। उसी से हमने आजादी और लोकतंत्र हासिल किया है। हम भारत की जनता के प्रति सार्वजनिक जीवन में नैतिकता और सत्य की निरन्तर तलाश के लिए प्रतिबद्ध हैं।

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