शिमला ।। हिमाचल प्रदेश में पिछले हफ्ते दुर्घटनाग्रस्त हुए वायुसेना के लड़ाकू विमान मिग-29 के मलबे की तलाश सोमवार को फिर से शुरू हो गई, लेकिन अधिकारियों का कहना है कि राज्य के ऊंचाई वाले इलाकों में हिमपात की वजह से अभियान में बाधा पड़ सकती है। चालक का अभी तक पता नहीं चल सका है।
अगले कुछ हफ्तों में ही लाहौल-स्पीति घाटी के पहाड़ बर्फ से ढक जाएंगे और इनका देश के अन्य इलाकों से चार माह से ज्यादा समय तक सम्पर्क कटा रहेगा। इसी घाटी में गत 18 अक्टूबर को विमान दुर्घटनाग्रस्त हुआ था।
हवाई एवं जमीनी तलाश में जुटे अधिकारियों ने सोमवार को आईएएनएस को बताया कि इलाके में बर्फ के कारण समय कम है और यहां अधिकतर चोटियां 4000-6000 मीटर ऊंचाई की हैं।
पुलिस उपाधीक्षक खजान सिंह ने बताया, “जिन ऊंची पहाडियों पर तलाशी अभियान चल रहा है वहां कुछ दिनों से हल्की बर्फ गिरी है।” स्थानीय प्रशासन तलाशी अभियान में वायुसेना की सहायता कर रहा है।
लाहौल और स्पीति के उपायुक्त राजीव शंकर ने कहा कि लगातार हिमपात के कारण रविवार को तलाशी का कार्य नहीं हो सका। उन्होंने कहा, “सोमवार को आकाश साफ होने के कारण अभियान फिर शुरू हो गया। लेकिन बर्फ से ढकी पहाड़ियों पर चढ़ाई कठिन है।”
पिछले हफ्ते कुछ ग्रामीणों ने थिरोड की पहाड़ियों पर जलते हुए विमान के टुकड़ों को देखने का दावा किया था लेकिन हिमपात एवं बर्फीली हवाओं के कारण तलाशी अभियान के सदस्य उस स्थान तक नहीं पहुंच सके हैं।
वायुसेना के एक अधिकारी ने आईएएनएस को बताया, “दुर्घटना स्थल का पता लगा लिया गया है लेकिन रात भर हुए हिमपात के कारण वहां पहुंचने में समस्या आ रही है।”
‘जनरल इंजीनियरिंग फोर्स’ (जीआरईएफ) के कमाडिग आफिसर प्रवीण येर्नुकर ने आईएएनएस को कहा, “लाहौल घाटी में अधिकतर पहाड़ हिमनद हैं। पूरे साल यहां सुबह हिमपात होता है। तापमान तेजी से गिर रहा है और हिमपात की सम्भावना बढ़ रही है।” जीआरईएफ सीमा सड़क संगठन की एक शाखा है।
इससे पहले 1968 में सेना का एक विमान चंद्रभागा श्रेणी में दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। इस दुर्घटना में मृत लोगों के बर्फ में दबे शव 2009 में मिले।