नई दिल्ली ।। देश में हजारों खदान श्रमिकों की सेहत खतरे में है, क्योंकि कई राज्य सरकारें फेफड़े की असाध्य बीमारी, सिलिकोसिस की रोकथाम के लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) द्वारा तय दिशानिर्देशों को नजरअंदाज कर दिया है।

एनएचआरसी के सदस्य पी.सी. शर्मा ने आईएएनएस से कहा, “इस बीमारी के बारे में सभी राज्यों को दिशानिर्देश भेजे जाने और उसके बारे में याद दिलाने के बावजूद पूरा परिदृश्य जस का तस है, क्योंकि राज्य सरकारों का रुख नकारात्मक है।”

सिलिकोसिस फेफड़े की ऐसी बीमारी है, जो पत्थर के छोट-छोटे कण मिश्रित धूल के सांस के साथ फेफड़े में पहुंचने से होती है। यह बीमारी खदानों में काम करने वाले श्रमिकों में बहुतायत होती है। यह बीमारी गुजरात, राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में अधिक है।

शर्मा के अनुसार, सिलिकोसिस के कारण कई मौतें हो चुकी हैं, लेकिन श्रमिकों को मुआवजे का कोई भुगतान नहीं हुआ है और उन्हें उचित इलाज भी सुलभ नहीं हो पाया है।

शर्मा ने कहा, “कानूनी कारण बताकर राज्य सरकारें अपनी जिम्मेदारियों से भाग रही हैं। वे यह बहाना बताकर पीड़ितों का इलाज कराने से इंकार कर देती हैं कि श्रमिक प्रवासी और असंगठित क्षेत्र से हैं, लिहाजा वे कर्मचारी राज्य बीमा निगम के दायरे में नहीं आते।”

आयोग को इस बीमारी से निपटने के प्रति राज्य सरकारों के उदासीन रवैए के बारे में शिकायतें प्राप्त हुई थीं, उसके बाद आयोग ने उन्हें निर्देश भेजे थे। लेकिन आयोग का कहना है कि कार्रवाई मात्र कागज तक ही सीमित रह गई है।

शर्मा ने कहा, “राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित कराना है कि खनन स्थलों पर नमी बनी रहे। लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। श्रमिकों की समयबद्ध स्वास्थ्य जांच के लिए कोई बंदोबस्त नहीं है। श्रमिकों की देखभाल करना राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है और इसमें यह कोई मायने नहीं रखता कि वे प्रवासी हैं।”

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