चित्तौड़गढ़ ।। राजस्थान के चित्तौड़गढ़ की पार्वती कोई सामान्य महिला नहीं हैं। उन्होंने 23 वर्ष की उम्र में पिछले महीने से अपनी स्कूली शिक्षा फिर से शुरू की है।

अब पार्वती अपने छह साल के पुत्र रमेश के साथ विद्यालय जाती हैं।

पार्वती ने यह कदम उठाकर राज्य के उन 12 लाख लोगों के सामने उदाहरण प्रस्तुत किया है, जिन्होंने बीच में अपनी शिक्षा छोड़ दी है।

राजस्थान सरकार इन दिनों प्रत्येक बच्चे को शिक्षा से जोड़ने के लिए अभियान चला रही है।

पार्वती ने आईएएनएस को बताया, “सरकारी विद्यालय के कुछ अध्यापक मेरे गांव मार्मी आए थे। उन्होंने कहा कि मुझे अपने बच्चे को विद्यालय भेजना चाहिए।”

अध्यापकों ने उसे एक बार गांव के विद्यालय आने का निमंत्रण दिया।

पार्वती ने कहा, “वहां जाने पर मालूम हुआ, शिक्षा कैसे व्यक्ति के जीवन को बदल सकती है। मुझे बड़ी शर्मिंदगी महसूस हुई, क्योंकि मैंने भी स्कूल की पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी थी।”

उन्होंने न केवल रमेश को विद्यालय भेजने का निर्णय लिया, बल्कि खुद भी स्नातक तक शिक्षा ग्रहण करने का निश्चय किया।

उन्होंने कहा कि पहल मैंने इस विषय में अपने घर वालों से बात की, लेकिन शुरू में उन्होंने समाज के डर से हिचकिचाहट दिखाई।

प्रफुल्लित पार्वती ने कहा कि मेरे जोर देने पर वे लोग राजी हो गए।

उनकी उम्र को देखते हुए विद्यालय प्रबंधन तय नहीं कर पा रहा था कि उन्हें किस कक्षा में दाखिला दिया जाए?

सरकारी कन्या विद्यालय की प्रधानाध्यापिका वन्दना विजयवर्गीय ने बताया कि उन्हें कक्षा आठ में दाखिला दे दिया गया है।

विजयवर्गीय ने बताया कि वह कक्षा दो तक पढ़ चुकी थीं और उन्होंने वादा किया कि अब वह और मेहनत करेंगी।

उन्होंने बताया कि पार्वती ने ऐसा किया भी है।

पार्वती के इस कदम से उनके पिता किशन लाल भी काफी खुश हैं।

उन्होंने कहा, “पार्वती की विद्यालयी शिक्षा यह सोचकर छुड़ा दी गई थी कि घरेलू कार्य उसके लिए उचित है, लेकिन उसने उन्हें गलत साबित कर दिया।”

पार्वती के इस कदम से उम्मीद की जा रही है कि उसके गांव के दूसरे परिवार भी प्रेरित होंगे।

पार्वती के गांव के राम किशोर ने कहा कि पार्वती के इस कदम के बाद गांव की कई महिलाएं विद्यालय जाने को सोच रही हैं।

राज्य सरकार ने एक जुलाई से राज्य भर में विद्यालयी शिक्षा बीच में छोड़ने वाले 6-14 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों को विद्यालय लाने के लिए अभियान चलाया है।

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