नई दिल्ली ।। जयप्रकाश नारायण भारतीय राजनीति में वह नाम है जिससे आज का हर एक नेता खुद को जुड़ा दिखाना चाहता है, भले ही जेपी के विचारों से उसका तनिक भी सरोकार न हो। हर पार्टी में निचले से लेकर शीर्ष स्तर पर यह देखने और सुनने को आसानी से मिल जाएगा कि हम भी जेपी आंदोलन का हिस्सा थे और वहीं से हमने राजनीति का ककहरा सीखा। दरअसल, सिद्धांत और प्रतिबद्धता की कमी और संकुचितता के चलते यह स्थिति पैदा हुई है। जेपी के शब्दकोश में ऐसी बातें नहीं थीं।

सच तो यह है कि जनतंत्र में यदि ‘जन’ की उपेक्षा होगी तो जनतंत्र की आत्मा खत्म हो जाएगी और किसी भी युग या काल में जब भी ऐसी परिस्थिति सामने आएगी जेपी जरूर याद आएंगे।

उस दौर में खुद जेपी ने कहा था, “वर्तमान जनतंत्र में केवल तंत्र रह गया है उसमें ‘जन’ नाम की कोई वस्तु नहीं बची। केवल ढांचा बचा है, जिसमें आत्मा नहीं है। जनतंत्र में हम जनतंत्र का गला घोंट कर ज्यादा दिन तक जीवित नहीं रह सकते। जनतंत्र में जनता जनार्दन की उपेक्षा करने वाला शासन ज्यादा दिनों तक नहीं चल सकता। इसलिए अब समय आ गया है कि हम जनतंत्र का मूल्य चुकाएं अन्यथा ऐसे जनतंत्र के अंतिम संस्कार की तैयारी करें।”

आज की परिस्थितियां भी कमोबेश वैसी ही हैं। जनता महंगाई, भ्रष्टाचार, आतंकवाद, नक्सलवाद जैसी समस्याओं से त्रस्त है। सरकारी नीतियों से ‘जन’ गायब हो गया है और सम्भवत: वर्तमान समस्याएं इसी की देन हैं। इसलिए तो रालेगण सिद्धि के छोटे से गांव आए अन्ना हजारे ने जब ‘जन’ को जोड़ने की कोशिश की तो जनता उनसे जुड़ती चली गई और व्यवस्था हिलती नजर आई। लोगों ने अन्ना में भी जेपी का ही अक्स देखा।

दरअसल, जेपी ने जिस सम्पूर्ण क्रांति का नारा दिया था उसका लक्ष्य अभी भी पूरा नहीं हुआ है। देश को जब इन समस्याओं से निजात मिल जाएगी तभी यह लक्ष्य पूरा हो सकेगा। वर्तमान परिस्थितियां उस लक्ष्य को पूरा करने का उन नेताओं को मौका प्रदान कर रही हैं, जिन्होंने जेपी के सानिध्य की वजह से ही आज एक मुकाम हासिल किया है।

इत्तेफाक से जेपी के आंदोलन की आग में तपकर निकले नेता ही आज की राजनीति में विभिन्न दलों में झंडाबरदार बने हुए हैं लेकिन दलीय संकुचितता के कारण उन्होंने जेपी के लक्ष्य को भुला दिया है।

दरअसल, सम्पूर्ण क्रांति की शक्ति बाद में दलों में बंटकर टूट गई और लोकमानस में यह प्रचलित विरोधवादी राजनीति का ही एक रूप होकर रह गई। वह राष्ट्र के मूलगामी पुनर्निर्माण का राष्ट्रीय अभियान नहीं बन सकी।

समाजवादी नेता तथा जनता दल (युनाइटेड) के अध्यक्ष शरद यादव कहते हैं, “गांधी हों या जेपी, हर युग और काल में उनके विचार प्रासंगिक हैं। आज की लड़ाई तो सिर्फ भ्रष्टाचार व महंगाई से है लेकिन जेपी ने जब लड़ाई लड़ी थी तब वह कई मुद्दों को लेकर मैदान में उतरे थे जिनमें भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और सामाजिक विषमता भी शामिल थे। व्यापक तौर पर देखा जाए तो वह राष्ट्र के लिए लड़ रहे थे।”

जेपी का कहना था कि सम्पूर्ण क्रांति समग्र है, सतत है, शुद्ध साधनों की है। ऐसी क्रांति उतनी ही शाश्वत है जितना समाज का जीवन। दोनों का कोई अंत नहीं है। हर काल और परिस्थिति में उसका स्वरूप बदलता रहेगा, उसकी पद्धति नई होती रहेगी। हां, कार्यक्रम बदलेंगे और कार्यशैली बदलेगी। हाल ही में अन्ना हजारे के नेतृत्व में हुए भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में यह देखने को भी मिला।

वास्तव में लोकतंत्र जनता की शक्ति के बिना नहीं बच सकता। इसलिए जरूरत है जेपी के नाम पर चल रही राजनीति को बंद कर उनके विचारों को आत्मसात करने की।

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