नई दिल्ली ।। फिल्मकार एवं पटकथा लेखक ‘रंग दे बंसती’ फेम राकेश ओमप्रकाश मेहरा ने कहा कि भारतीय सिनेमा के इतिहास से मालूम होता है कि भारत की बदलती सामाजिक-राजनीतिक अवस्था के अनुसार खलनायक भी बदलते रहे।

 मेहरा ने कहा, “पहले खलनायक ब्रिटिश हुआ करते थे। फिर गरीब-अमीर संघर्ष में जमींदार खलनायक बने और उसके बाद पिता खलनायक बन गए (क्योंकि वह आपसे कहते कि किस छात्रावास में ठहरें और आपको किससे शादी करनी चाहिए)। और अब तंत्र ही खलनायक बन गया है।”

मेहरा समाचार पत्र ‘द हिंदू’ द्वारा आयोजित एक उत्सव के दौरान फिल्म लेखक जय अर्जुन सिह से राजधानी में रविवार को बात कर रहे थे।

मेहरा का मानना है कि फिल्में देश की भावना को भी प्रदर्शित करती हैं।

उन्होंने कहा, “यदि आप हिंदी एवं दक्षिण भारत के सिनेमा को देखेंगे तो यह पिछले 60 सालों में देश की मनोस्थिति को प्रदर्शित करता है। देश के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए नेहरू के आह्वान को सिनेमा में देखा जा सकता है।”

मेहरा ने कहा कि उसके बाद महाराष्ट्र-बंगाल के अकाल और चीन युद्ध से सिनेमा में पलायनवाद की प्रवृत्ति विकसित हुई। सिनेमा में वास्तविकता की जगह नृत्य संगीत को प्रमुखता मिली, जिसके सबूत शम्मी कपूर हैं और यह क्रम आज तक चल रहा है।

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