नई दिल्ली ।। भारत और चीन के वैज्ञानिकों ने अपने-अपने देश के लोगों को विज्ञान से जोड़ने की साझा पहल की है। इस तरह की यह सम्भवत: पहली कोशिश है।

दोनों देशों के शोधकर्ताओं ने अपनी सरकारों द्वारा विज्ञान को बढ़ावा देने के लिए चलाई जा रही गतिविधियों को ‘कंस्ट्रक्टिंग कल्चर ऑफ साइंस : कम्युनिकेशन ऑफ साइंस इन इंडिया एंड चाइना’ नामक पुस्तक में शामिल किया है।

इस पुस्तक को भारत के 10 और चीन के आठ शोधकर्ताओं ने तैयार किया है। इसमें विज्ञान के प्रति लोगों में रुचि पैदा करने के लिए औपचारिक तथा अनौपचारिक सभी माध्यमों की भूमिका, उनके प्रभाव तथा समस्याओं का जिक्र है।

काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च-निस्केयर (नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस कम्युनिकेशन एंड इंफॉर्मेशन साइंसेज) के निदेशक गगन प्रताप ने कहा, “ऐसा सम्भवत: पहली बार हुआ है जब दुनिया की दो तेजी से विकसित हो रही अर्थव्यवस्थाओं ने विज्ञान के प्रति लोगों में रूझान पैदा करने के लिए हाथ मिलाया है।”

उन्होंने कहा, “किसी भी अन्य पुस्तक में इन दो संस्कृतियों में विज्ञान के साथ लोगों को जोड़ने के लिए चलाई जा रही गतिविधियों की इतनी विस्तृत जानकारी नहीं दी गई है।”

निस्केयर और चाइना रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर साइंस पॉपुलराइजेशन (सीआरआईएसपी) के वैज्ञानिकों के संयुक्त प्रयास से लिखी गई इस पुस्तक में इस तरह के सवाल हैं : क्या विज्ञान के साथ सहजता से विकास सम्भव है? वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सूचना प्राप्त व्यक्ति क्या जीवन में अच्छे निर्णय लेने में सक्षम होता है?

इस पुस्तक का विमोचन मंगलवार को नैस्कॉम के अध्यक्ष किरण कार्णिक ने किया। पुस्तक के वर्तमान खंड के पाठक नीति-निर्माता, विज्ञान के प्रति रूझान पैदा करने वाले, विज्ञान की आम समझ के बारे में छानबीन करने वाले विद्वान, इस दिशा में काम करने वाले विभिन्न संगठनों के कार्यकर्ता और मीडियाकर्मी होंगे।

पुस्तक के सम्पादक गौहर रजा ने आईएएनएस से कहा, “विज्ञान को वैश्विक रूप से बढ़ावा देने में दोनों देश महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं।”

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