श्रीहरिकोटा (आंध्र प्रदेश) ।। भारत ने बुधवार को एक साथ चार उपग्रहों का सफल प्रक्षेपण कर अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक नया कीर्तिमान स्थापित किया। ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान-सी18 (पीएसएलवी-सी18) से भेजे गए जलवायु पर नजर रखने वाले उपग्रह मेगा ट्रॉपिक्स और तीन नैनो उपग्रहों को सफलतापूर्वक उनकी कक्षा में स्थापित कर दिया गया।

अंतरिक्ष के मलबे से उपग्रहों के टकराने की आशंका के चलते पीएसएलवी-सी18 के प्रक्षेपण में एक मिनट की देरी की गई।

पीएसएलवी के साथ जिस मेगा ट्रॉपिक्स उपग्रह को ले जाया गया उसका वजन एक हजार किलोग्राम है। इसे उष्ण कटिबंध वाले क्षेत्रों की स्थिति का पता लगाने के लिए बनाया गया है। इस उपग्रह को पर्यावरण के बदलावों और जलवायु सम्बंधी अध्ययनों के लिए भारत और फ्रांस ने मिलकर तैयार किया है।

इसके जरिए वर्षा, पानी के भाप में बदलने, जल की तरलता के अलावा मौसम परिवर्तनों के बारे में जानकारी प्राप्त हो सकेगी। इसके अलावा अंतरिक्ष में पहुंचे नैनो सेटेलाइट जुगनू में धरती का चित्र लेने के लिए एक स्वदेश निर्मित कैमरा लगाया गया है। यह कैमरा पेड़-पौधों और जलाशयों की तस्वीरें खींच सकेगा और बाढ़, सूखा और आपदा प्रबंधन के सम्बंध में जानकारियां एकत्र करने में मददगार साबित होगा।

श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष केंद्र से पीएसएलवी-सी18 का सफल प्रक्षेपण किया गया। यह यान अपने साथ भारतीय-फ्रांसीसी उष्ण कटिबंधीय मौसम उपग्रह मेघा-ट्रॉपिक्स व तीन अन्य छोटे उपग्रह लेकर रवाना हुआ। इस तरह का अंतरिक्ष मिशन शुरू करने वाला भारत दुनिया का दूसरा देश है। इसके साथ ही भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के रॉकेट पीएसएलवी द्वारा अंतरिक्ष में छोड़े जाने वाले उपग्रहों की संख्या 50 का आंकड़ा पार कर गई।

पीएसएलवी-सी18 यान 44 मीटर लम्बा है और इसका भार 230 टन है। यान के साथ 1,042.6 किलोग्राम के चार उपग्रह अंतरिक्ष में भेजे गए। श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष केंद्र तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई से करीब 80 किलोमीटर की दूरी पर है।

इसरो के अध्यक्ष के. राधाकृष्णन ने संवाददाताओं को बताया, “पीएसएलवी-सी18 को बहुत बड़ी सफलता मिली है। चारों उपग्रह बहुत सही ढंग से गोलाकार कक्षा तक पहुंचा दिए गए हैं।”उन्होंने मेघा ट्रॉपिक्स मिशन को भारत व फ्रांस के बीच सहयोग के एक नए युग की शुरुआत बताया। उन्होंने कहा, “यह सही मायनों में एक वैश्विक मिशन है।”

मेघा ट्रॉपिक्स के सफल प्रक्षेपण के लिए इसरो की प्रशंसा करते हुए फ्रांसीसी अंतरिक्ष एजेंसी सेंटर नेशनल डी’एट्यूड्स स्पेटिएल्स (सीएनईएस) के एक वैज्ञानिक ने इसे एक ‘व्यवसायिक प्रक्षेपण’ बताया। उन्होंने कहा, “इसरो का यह प्रक्षेपण अनूठा है। यह बहुत अच्छा है।”

पीएसएलवी-सी18 का सफल प्रक्षेपण उसके निर्धारित समय से एक मिनट के विलम्ब पर हुआ। अंतरिक्ष मलबे से चार उपग्रहों की टक्कर टालने के उद्देश्य से प्रक्षेपण में 60 सेकेंड की देरी की गई।

राधाकृष्णन ने कहा, “भारत और फ्रांस के बीच समय के अंतर को ध्यान में रखने के बाद परीक्षण सुबह 11 बजे निर्धारित था लेकिन अंतरिक्ष के मलबे से उपग्रहों के टक्कर की आशंका से बचने के लिए परीक्षण में एक मिनट की देरी की गई।”

सीएनईएस ने मेघा-ट्रॉपिक्स के लिए तीन उपकरण एसएपीएचआईआर, एससीएआरएबी और जीपीएस-आरओएस डिजाइन किए थे। चौथा उपकरण एमएडीआरएएस इसरो व सीएनईएस ने संयुक्त रूप से बनाया।

इसरो के मुताबिक मेघा-ट्रॉपिक्स से जलवायु सम्बंधी अनुसंधान में मदद मिलेगी। इसके साथ ही वैज्ञानिकों को इससे मौसम का पूर्वानुमान लगाने वाले मॉडल्स को और बेहतर बनाने में मदद मिलेगी।

इससे पहले 27 नवंबर, 1997 को ‘ट्रॉपिकल रेनफॉल मेजरिंग मिशन’ (टीआरएमएम) शुरू किया गया था। यह उष्णकटिवंधीय वर्षा पर नजर रखने व उसके अध्ययन के लिए नासा व जापान एरोस्पेस एक्सप्लोरेश एजेंसी (जेएएक्सए) का संयुक्त मिशन था।

पीएसएलवी-सी 18 द्वारा ले जाए गए तीन अन्य छोटे उपग्रहों में चेन्नई के नजदीक स्थित एसआरएम विश्वविद्यालय के छात्रों का बनाया 10.9 किलोग्राम भार का उपग्रह एसआरएमसैट है। दूसरा तीन किलोग्राम का दूरसंवेदी उपग्रह जुगनू है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर ने इसे बनाया है। इनके अलावा लक्जमबर्ग का 28.7 किलोग्राम का वैसलसैट उपग्रह है।

अपनी 22 मिनट की उड़ान में रॉकेट ने सबसे पहले मेघा-ट्रॉपिक्स को और फिर एसआरएमसैट, वैसलसैट व जुगनू उनकी कक्षाओं में छोड़ा।

यह मिशन 25 मिनट में पूरा हो गया। इसरो के वैज्ञानिक मिशन पर नजर रखे हुए हैं।

एसआरएमसैट उपग्रह 1.1 करोड़ रुपये की लागत से बनाया गया है। इसमें एक स्पेक्टोमीटर लगा है जो वातावरण में मौजूद ग्रीनहाउस गैसों, कार्बन डाईऑक्साइड व जल वाष्प पर नजर रखेगा। वैसलसैट से समुद्र में जहाजों की स्थिति पता चल सकेगी।

पीएसएलवी रॉकेट के जरिए अब तक किए गए 53 उपग्रह प्रक्षेपणों में से इसके 52 मिशन सफल रहे हैं। साल 1993 में एक प्रक्षेपण असफल रहा था, उस समय उपग्रह अपनी कक्षा में नहीं पहुंच सका था।

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