lok sabha chunav

भारत मे चुनाव एक पर्व की तरह होता है। भारत में कुछ नेता ऐसे है जिन्होने लोकसभा चुनाव में रोमांचक जीत प्राप्त की है। रोमांचक मुकाबले का मतलब है, काफी करीबी मुकाबले में, अंतिम समय में या काफी कम अंतर से चुनाव जीतना।

क्या आप जानते हैं इन नेताओं को जिन्होनें अपने विरोधियों को 200 से भी कम मतों से चुनाव में हराया हो, कई ऐसे चुनाव हुए हैं जिसमें ऐसे कारनामें हो चुके हैं। आइए जानते हैं कुछ ऐसे ही चुनावी जीत के बारे में।

सबसे कम मतों से होने वाली कुछ हार जीत:

1998 का राजमहल लोकसभा सीट का चुनाव- वर्ष 1998 के झारखंड के राजमहल लोकसभा चुनाव में बीजेपी के सोम मरांडी ने कांग्रेस के थोमस हांसदा को महज 9 मतों से चुनाव में हरा दिया था। यह काफी रोमांचक मुकाबला था।

इस मुकाबले में कांग्रेस के थोमस हांसदा को पहले जीत दे दी गई थी | बाद में बीजेपी के कार्यकर्ताओं के द्वारा पुर्ण मतगणना की मांग करने पर मतों की फिर से गिनती की गयी और सोम मरांडी को 9 मतों से विजेता घोषित किया गया।

1962 में मणिपुर लोकसभा सीट का चुनाव- 1962 के मणिपुर लोकसभा सीट के चुनाव में काफी रोमांचक मुकाबले देखने को मिले थे। इस चुनाव में सोशलिस्ट पार्टी के रिशांग ने महज 42 मतों से चुनाव में जीत दर्ज की थी। रिशांग ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भी हिस्सा लिया था। बाद में रिशांग नेहरू जी के आमंत्रण पर कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गये।

1967 का लोकसभा चुनाव- 1967 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के एम राम ने अपने प्रतिद्वंदी को महज 203 मतों से पराजित किया था। यह जीत 1967 के लोकसभा चुनाव की सबसे छोटी जीत थी। हलांकि इस चुनाव से पहले ही रिशांग ने महज 42 मतों से मणिपुर में जीत दर्ज कर इतिहास बनाया था।

1971 का लोकसभा चुनाव- तमिलनाडु में 1971 के लोकसभा चुनाव में DMK के एम एस शिवसामी ने मात्र 26 मतों से कांग्रेस के प्रत्याशी को चुनाव में हराया था। यह तमिलनाडु में सब से कम मतों का जीत था। काफी दिनों तक इस जीत का रिकॉड रहा है।

1977 का लोकसभा चुनाव – 1971 के लोकसभा चुनाव में पीजेंट एंड वर्कर्स पार्टी के डी डी बलवंत राव ने कांग्रेस प्रत्याशी को महज 165 मतों से चुनाव में हरा दिया था। डी डी बलवंत की जीत इस कारण भी खास थी कि इस सीट से इससे पहले कांग्रेस कभी नहीं हारी थी। 1977 का चुनाव देश में आपातकाल के बाद आयोजित किया गया था। आपातकाल में कांग्रेस के विरूद्ध जनता में काफी आक्रोश देखने को मिला था।

1980 का लोकसभा चुनाव- 1980 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के रामायण राय ने मात्र 77 मतों से जीत दर्ज की थी यह चुनाव अपने आप में काफी रोमांचक हुआ था। कांग्रेस के लिए इस चुनाव में वापसी करना काफी अहम माना जा रहा था। रामायण राय पहले सोशलिस्ट पार्टी के नेता हुआ करते थे। 1967 में उन्होने कांग्रेस का दामन थामा था।

लोकसभा चुनाव 1984- यह एक एतिहासिक चुनाव था इस चुनाव में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उपजे लहर में कांग्रेस पूरे देश में चुनाव जीत रही थी। इस चुनाव में शिरोमनी अकाली दल के मेवा सिंह ने 140 मतों से जीत दर्ज की थी। इस जीत ने पंजाब में अकाली दल को अपना आधार को बचा कर रख पाने में मदद की थी।

1991 का लोकसभा चुनाव- 1991 के लोकसभा चुनाव में जनता दल के राम अवध ने 156 मतों से चुनाव में जीत दर्ज की थी। यह जीत कई मायने में अहम थी चुकि 1991 आते-आते जनता दल सिमटने लगी और 1989 में सरकार बनाने वाली पार्टी 1991 में तीसरे स्थान पर चली गयी थी।

1996 का आम चुनाव- 1996 के आम चुनाव में गयकवाड़ सत्यजीत सिंह ने 17 मतों से जीत दर्ज की थी। इस चुनाव की मतगणना को कई बार करवाया गया था। कांग्रेस का इस चुनाव में प्रदर्शण काफी खराब रहा था | पार्टी पहली बार 150 के आंकड़ों से भी नीचे आ गयी थी। ऐसे में इतने कम मतों से उनकी जीत काफी अहम मानी गयी।

1999 का लोकसभा चुनाव- 1999 के लोकसभा चुनाव में बसपा के प्यारेलाल शंखलाल ने 105 मतों से जीत दर्ज की थी। इस चुनाव में प्यारेलाल शंखलाल की जीत काफी अहम थी बसपा इस समय देश भर में अपना विस्तार कर रही थी। ऐसे समय में उनकी जीत ने बसपा को काफी मदद करी |

2004 का लोकसभा चुनाव- 2004 के लोकसभा चुनाव में जदयू के डॉ पी पूकुनहिकोया ने मात्र 71 मतों से चुनाव जीता था। इस चुनाव में जनता दल यूनाइटेड की देश भर में हार हुई थी। जदयू एनडीए गठबंधन का हिस्सा था। एनडीए की हार के बीच इतने कम मतों से उनकी जीत काफी उत्साह करने वाली थी।

2009 का लोकसभा चुनाव- 2009 के चुनाव में राजस्थान में नमो नारायण मीणा ने मात्र 317 मतों से चुनाव जीता था। इस चुनाव में कांग्रेस को देश भर में जीत मिली थी। राजस्थान में भी काग्रेस ने अच्छा प्रदर्शन किया था। इस चुनाव के बाद एक बार फिर कांग्रेस की सरकार बनी थी।

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