नई दिल्ली ।। ओलम्पिक में स्वर्ण पदक जीतकर देश का नाम रोशन करने वाले निशानेबाज अभिनव बिंद्रा का कहना है कि भारत में वैसी खेल नीति और संस्कृति का अभाव है जो बच्चों में खेल को आजीविका के रूप में अपनाने के लिए प्रोत्साहित करे।

बिंद्रा ने अपनी आत्मकथा ‘ए शॉट एट हिस्ट्री : माई ओबसेसिव जर्नी टू ओलम्पिक गोल्ड’ किताब का विमोचन सह लेखक रोहित बृजनाथ के साथ राजधानी में इस सप्ताह किया।

बिंद्रा ने ‘आईएएनएस’ को बताया, “हमारे देश में खेल संस्कृति नहीं है। कई माता-पिता ऐसे हैं जो अपने बच्चों को खेल के क्षेत्र में नहीं जाने देते। देश में खेल को बढ़ावा देने के लिए सचेत प्रयास करने जरूरत है।”

उल्लेखनीय है कि बिंद्रा ने वर्ष 2008 में बीजिंग ओलम्पिक के 10 मीटर एयर राइफल स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता था।

बिंद्रा ने कहा, “क्रिकेट ने अन्य खेलों को मद्धिम कर दिया। हर देश किसी न किसी खेल में उच्च स्तर का प्रदर्शन करता है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि उस खेल के अलावा बाकी खेलों को नजरअंदाज किया जाए। क्रिकेट केवल आठ देशों में खेला जाता है।”

बिंद्रा द्वारा लिखी गई आत्मकथा में यह कहा गया है कि उन्होंने 13 वर्ष की उम्र में खिलाड़ी बनने का निर्णय लिया और उसके बाद उन्होंने निशानेबाजी सीखनी शुरू की थी।

बिंद्रा के एक ममेरा रिश्तेदार सेना में जनरल थे। बिंद्रा ने कहा, “जब मैं बोर्डिग स्कूल में था तब मेरे पिता प्रत्येक दूसरे सप्ताह मुझे एक पत्र लिखकर मुझसे किसी खेल को खेलने के बारे में पूछा करते थे। मैंने इसमें कुछ करने को सोचा और निशानेबाजी खेल को चुना। मेरा बंदूकों के साथ हमेशा से लगाव रहा है..और परिस्थितियों पर नियंत्रण रहा है।”

अगले वर्ष लंदन में होने वाले ओलम्पिक की तैयारियों में जुटे बिंद्रा ने कहा, “मैं खेल के हर क्षेत्र में काम कर रहा हूं जिनमें मानसिक और शारीरिक दोनों शामिल है। मैं नई चुनौतियों का सामना करने को तैयार हूं।”

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