तिनसुकिया(असम) ।। असम में 60 वर्षीय देबारी नागबंशी का कसूर सिर्फ इतना था कि उसने नई नवेली दुल्हन की साड़ी की तारीफ कर दी और एक दिन बाद दुल्हन बीमार पड़ गई। फिर क्या था गांव वालों की अंगुलियां नागबंशी पर उठने लगीं और उसे ‘डायन’ करार दे दिया गया।

राज्य के जनजातीय बहुल इलाकों में ऐसे बहुत से मामले हैं, जिसमें अकेली रहने वाली या फिर विधवा को डायन घोषित कर मारा पीटा जाता है। कुछ मामलों में तो हत्या भी कर दी जाती है। सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि इसके पीछे मुख्य कारण जागरुकता एवं स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव एवं सम्पत्ति सम्बंधी मामले प्रमुख हैं।

नागबंशी ने आईएएनएस को बताया, “देर रात (अप्रैल) गांव के लोग मेरे दरवाजे पर आ धमके और मुझे बाहर निकाल कर लहूलुहान होने तक पीटते रहे।”

इस तरह के मामलों में मृत महिलाओं की सही संख्या का आकलन मुश्किल है लेकिन राज्य के गृह मंत्रालय के अनुसार डायन घोषित करने के नाम पर पिछले दस वर्षो में 66 महिलाओं सहित 116 लोग मारे गए।

इसी तरह के एक अन्य मामले में 23 वर्षीय विधवा रेजिना दैमरी को सम्पत्ति के लालच में उनके ससुरालवालों ने उन्हें डायन घोषित कर दिया।

जोरहाट निवासी दैमरी ने कहा, “मेरे पति के रिश्तेदारों ने सम्पत्ति पर कब्जा मांगा। उनका कहना था कि विधवा को इसका क्या काम है। मैंने इसका विरोध किया, तो मुझे धमकी दी गई।”

दैमरी ने बताया कि अगले दिन मालूम हुआ कि उसे डायन घोषित कर दिया गया है।

स्वास्थ्य कार्यकर्ता एवं तिनसुकिया के चाय बागान में काम करने वाली रोजेबोती रांडिया इस सामाजिक बुराई के खिलाफ जागरुकता फैलाने का काम कर रही हैं।

उन्होंने कहा, “मैं लोगों को समझाने का प्रयास कर रही हूं कि यह सब अंधविश्वास है। स्वास्थ्य सुविधाओं एवं जागरुकता के अभाव, निरक्षरता के कारण लोग इलाज के लिए झोला छाप चिकित्सकों एवं ‘ओझा’ के पास जाते हैं।”

एक आधिकारिक बयान के अनुसार मामले की गम्भीरता को देखते हुए असम पुलिस ने राज्य महिला आयोग के साथ मिलकर डायन घोषित करने की इस प्रथा के खिलाफ सामुदायिक निरीक्षण की व्यवस्था शुरू की है।

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