बांदा ।। कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर गुरुवार को सुबह से ही कालिंजर दुर्ग की सरगोह में विराजमान भगवान नीलकंठेश्वर के दर्शन के लिए हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ रही। श्रद्धालओं ने किले के ऊपर बने ‘बुड्ढ़ी-बुड्ढ़ा’ तालाब व सरगोह में डुबकी लगाई।

चंदेल कालीन दुर्ग कालिंजर में सुबह से श्रद्धालुओं की भीड़ जमा होनी शुरू हो गई। हजारों श्रद्धालुओं ने किले के ऊपर बने ‘बुड्ढ़ी-बुड्ढ़ा’ तालाब व सरगोह में स्नान कर भगवान नीलकंठेश्वर के दर्शन किए। बुड्ढ़ी-बुड्ढ़ा तालाब की खासियत यह है कि इनमें से एक तालाब का पानी गर्म व दूसरे का हमेशा ठंडा रहता है, जबकि सरगोह का निर्माण पहाड़ की चोटी से एक सौ फुट नीचे गुफा के रूप में किया गया है जहां विशालकाय शिवलिंग स्थापित है।

कहा जाता कि समुद्र मंथन से निकले विष का पान करने के बाद भगवान शिव को कालिंजर के इसी दुर्ग में शांति मिली थी। विषपान से उनका कंठ नीला पड़ गया था तभी से उनका ‘नीलकंठेश्वर’ नाम पड़ा है।

किंवदंती है कि कार्तिक पूर्णिमा में नीलकंठेश्वर के दर्शन से एक सौ गायों के दान के बराबर पुण्य लाभ होता है।

पुलिस उपाधीक्षक (सीओ) नरैनी धर्म सिंह मर्छाल ने बताया, “श्रद्धालुओं की सुरक्षा के मद्देनजर किले में पहले से ही एक पुलिस चौकी है। चार दिन तक चलने वाले कार्तिक मेले में अतिरिक्त पुलिस बल भी तैनात किया गया है।”

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