नई दिल्ली ।। गुजरात को विकास का मॉडल बताने की होड़ लगी है। दुनिया भर में डंका है कि निवेश के लिए इससे बेहतर राज्य कोई दूसरा नहीं, लेकिन नरेंद्र मोदी के गुजरात में कुपोषित लोगों की तादाद उत्तर प्रदेश और ओडिशा जैसे पिछड़े कहे जाने वाले राज्यों से भी ज्यादा है। यही नहीं, दलितों और आदिवासियों के बीच भुखमरी की स्थिति है। यह खुलासा देश के एक प्रतिष्ठित संस्थान के सर्वेक्षण में हुआ है।

यह ऐसा सच है जिसे गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी शायद ही सुनना चाहें। मोदी की नजर में गुजरात और स्वर्ग में बहुत फर्क नहीं है। लेकिन यह स्वर्ग उद्योगपतियों को चाहे जितना लुभाए, गरीबों के पेट भरने का इंतजाम वहां भी नहीं है। 

इंस्टीट्यूट ऑफ अप्लाइड मैनपॉवर रिसर्च के सर्वेक्षण में गुजरात को लेकर कई चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं। इस सर्वेक्षण के मुताबिक दूसरे राज्यों की तुलना में गुजरात में दलितों और आदिवासी समुदाय में कुपोषित लोगों की तादाद ज्यादा है।

यही नहीं, भूख सूचकांक में भी गुजरात की हालत उत्तर प्रदेश, बंगाल और ओडिशा से खराब है। भूख को लेकर 17 राज्यों में हुए सर्वेक्षण में गुजरात 13वें स्थान पर रहा यानी, सिर्फ आर्थिक विकास से कोई राज्य खुशहाल नहीं हो सकता। केवल औद्योगिक उत्पादन बढ़ाने भर से भूख नहीं मिट सकती। इस नीति से अमीर-गरीब के बीच का अंतर बढ़ता जाता है। 

सर्वेक्षण के मुताबिक गुजरात, तमिलनाडु, महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे राज्यों में गरीबों की हालत बुरी है।

इस सर्वेक्षण ने मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के विरोधियों को हमले का एक और मौका दे दिया है। हालांकि सर्वेक्षण में दावा किया गया है कि पूरे देश में स्वास्थ और शिक्षा के मापदंड में गरीबों की हालत पिछले दशक से बेहतर हुई है। लेकिन चिंता में डालने वाले कई तथ्य भी सामने आए हैं। देश भर में तीन साल से कम उम्र वाले 50 फीसदी बच्चे कुपोषित हैं। भारत में नवजात बच्चों का वजन सार्क देश में सबसे कम है। आर्थिक विकास और निजी निवेश को तरक्की का पैमाना मानने वालों के लिए यह आंखें खोलने वाला सर्वेक्षण है, क्योंकि आम आदमी की जिंदगी बेहतर किए बिना, विकास का कोई खास मतलब नहीं हो सकता।

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