नई दिल्ली ।। केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने कहा कि महंगाई में हालांकि हाल में कुछ कमी आई है, लेकिन इसका स्तर अब भी स्वीकार नहीं है। उन्होंने साथ ही कहा कि सरकार के पास इसे कम करने के लिए अधिक विकल्प नहीं हैं।

मुखर्जी ने दिल्ली इकनॉमिक कॉनक्लेव में कहा, “गिरावट के रुझान के बावजूद महंगाई अब भी अस्वीकार्य स्तर पर है। इसके अलावा वित्तीय घाटा और चालू खाता घाटा की वर्तमान स्थिति भी चिंताजनक है।”

सम्मेलन में अर्थशास्त्री, नीति निर्माता, व्यापार और उद्योग जगत के प्रतिनिधि, वित्तीय क्षेत्र के विशेषज्ञ, शिक्षाविद तथा शोधार्थी हिस्सा ले रहे हैं। उभरती अर्थव्यवस्थाओं की आर्थिक नीतियों पर यह एक प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन है।

खाद्य महंगाई दर तीन दिसम्बर को समाप्त सप्ताह में घटकर 4.35 फीसदी पर आ गई, जो पिछले चार सालों का निचला स्तर है। दो सालों तक दहाई अंकों में रहने के बाद खाद्य महंगाई दर में पिछले एक माह में तेज गिरावट दर्ज की गई है।

ताजा आंकड़े के मुताबिक नवम्बर माह की वार्षिक महंगाई दर अभी भी 9.11 फीसदी के असुविधाजनक स्तर पर बनी हुई है।

मुखर्जी ने कहा कि महंगाई को कम करने के लिए सरकार के पास मौद्रिक और वित्तीय साधन बहुत कम है और इसके लिए कोई नया तरीका अपनाना पड़ेगा।

मुखर्जी ने कहा, “मौद्रिक सख्ती की नीति के कारण मांग और निवेश के विकास में कमी आई है। औद्योगिक सुस्ती विशेष चिंता का विषय है, क्योंकि इसका सीधा असर रोजगार पर पड़ता है।”

गौरतलब है कि भारतीय रिजर्व बैंक शुक्रवार को मध्य तिमाही मौद्रिक समीक्षा जारी करेगा। कारोबारी जगत को अनुमान है कि बैंक इस बार प्रमुख दरों में वृद्धि नहीं करेगा।

मुखर्जी ने कहा कि सरकार आर्थिक विकास के लिए सुधार का रास्ता अपनाएगी। इसके लिए सरकार ने राष्ट्रीय विनिर्माण नीति, खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश बढ़ाने, प्रत्यक्ष कर संहिता, वस्तु एवं सेवा कर जैसे कई कदम उठाए हैं।

उन्होंने इन विषयों पर सहमति बनने की उम्मीद जताई ताकि इनका तेजी के साथ कार्यान्वयन हो सके।

 

 

 

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