Picture Credit - amarujala.com

हकलाने की समस्या बच्चों में समान्यतः 2 से 7 साल की उम्र में शुरू होती है। शुरू में छोटे बच्चे पैरेन्ट्स के ध्यान को आकर्षित करने के लिए हकलाकर या तुतलाकर बोलते हैं और माता-पिता भी बच्चे की इन गतिविधियों को उसके विकास की उम्र मानकर बालपन की बालसुलभ प्रवृत्ति मानकर अनदेखा करने लगते हैं। धीरे-धीरे उनकी यह अनदेखी बच्चो में हकलाने की समस्या के रूप में सामने आने लगती है।

हकलाना एक मानसिक विकार है, न कि शारीरिक।  हकलाने वाले बच्चे के स्वर तंत्र में कोई खराबी नहीं होती, बस वह आम बच्चों की तरह धारा प्रवाह और स्पष्ट बोलते समय बीच-बीच में शब्दों को तोड़-मोड़कर या मुख्य शब्द को बार-बार दोहराकर बोलता है।

ऐसे बच्चे कई बार बोलना चाहते हैं, पर बोल नहीं पाते और हकलाने या हिचकिचाने लगते हैं, जैसे कोई बच्चा किसी खास वाक्य को सामान्य परिस्थितियों में बोलने पर नहीं हकलाता, लेकिन उसी वाक्य या बात को किसी खास परिस्थितियों में बोलने पर हकलाता या हिचकिचाता है।

प्रायः देखा जाता है कि हकलाने वाले बच्चे अन्य बच्चों की तुलना में दिमागी तौर पर तेज होते हैं। ऐसे बच्चे स्वभाव से अन्तर्मुखी व भावुक होते हैं, इसलिए दूसरों के सामने बोलने से घबराते या शरमाते हैं। कई बार तो उनके मन में यह बात बैठ जाती है कि दूसरे व्यक्ति के सामने रूक-रूक कर बोलने पर उनकी हंसी उड़यी जाएगी। ऐसी स्थिति में उनके हकलाने की प्रवृत्ति और भी बढ़ जाती है।

हकलाकर बोलने वाले बच्चे फोन पर बात करते समय या स्कूल आदि में इंटरव्यू देते समय भी घबराते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि बाहरी लोगों से बात करने पर वे हकलाने लगेंगे, लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि ये बच्चे हर समय नहीं हकलाते। उनके हकलाने की स्थिति किसी विशेष पर निर्भर करती है, जैसे इंटरव्यू के दौरान होने वाली घबराहट, तनाव, अनजाना डर आदि।

कैसे करें हकलाहट को दूर?

यदि कोई हकलाने या अटक-अटक कर बोलने वाला सदस्य घर में हो तो उसमें सही बोलने की ललक पैदा करें। उसे यह समझाएं कि उनका स्वर यंत्र भी उतना ही समर्थ है, जितना कि दूसरे लोगों का। इस पर भरोसा जागा तो ही वह सही बोलने का प्रयास करेगा।

ऐसा नहीं है कि यह हकलाना खत्म नहीं हो सकता। इसके लिए स्पीच थेरेपी लेनी पड़ती है। अगर बचपन में आपका बच्चा इस समस्या से परेशान है, तो डॉक्टर की सलाह से स्पीच थेरेपी लेना शुरू करवा दें। शुरुआत में यह थेरेपी ज्यादा दिनों की नहीं होती। तीन-चार महीने में ही हकलाहट की यह आदत खत्म हो जाती है पर यही इलाज अगर बड़े होने पर किया जाए, तो एक-दो साल लंबा चलता है।

हकलाहट से परेशान लोगों और बच्चों के लिए परिवार का साथ बेहद जरूरी होता है। आप उनका हौसला और उनके आत्मविश्वास को बढ़ाएं, ताकि वे अपने पर भरोसा रखें। घबराकर हार न मानें। ऐसे लोगों का मजाक न बनाएं, उन्हें समझाएं कि यह कोई बीमारी नहीं बल्कि सिर्फ आदत है, जो थोड़े समय की स्पीच थेरेपी से दूर हो सकती है।

5/5 - (2 votes)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here