rickshaw rti expert

मुजफ्फरपुर ।। कहते हैं कि यदि आदमी के अन्दर कुछ करने का जज्बा हो तो वह क्या नहीं कर सकता। मतलब यदि वह चाहे तो कुछ भी कर सकता है, इसी तरह रिक्शा खींचने वाले मोहम्मद खालिद ने जुल्म-ओ-सितम के खिलाफ कलम चलानी शुरू की तो अच्छे-अच्छों के छक्के छूट गए। जनमानस को हक दिलाने के लिए उन्होंने सूचना के अधिकार को हथियार बनाया। अब उनकी पहचान आरटीआई एक्सपर्ट के रूप में बन चुकी है। कक्षा सातवीं तक पढ़ाई करने वाले खालिद अब तक दो सौ से ज्यादा आम-आवाम के हक में आरटीआई दाखिल कर दर्जनों अफसरों को ईमानदारी का पाठ पढ़ा चुके हैं।

दिन निकलते ही मोहम्मद खालिद के घर लोगों का तांता लगना शुरू हो जाता है। कुछ अपने हक के लिए, तो कुछ सूचना के अधिकार को हथियार बनाने का गुर पूछने आते हैं। अभी तक वह आरटीआई के तहत करीब 216 अर्जियां दाखिल कर चुके हैं। इनमें लगभग सौ आरटीआई के मिले जवाब के जाल में शासन-प्रशासन को लपेटकर हकदारों को उनका हक दिला चुके हैं। स्थानीय स्तर पर जवाब मिलता न देख खालिद लखनऊ तक को हिलाने का साहस रखते हैं। खालिद के ही प्रयास थे कि सरवट स्थित करोड़ों की जमीन से सालों बाद अवैध लोगों का कब्जा हटा और बारात घर बना। ऐसे कामों की सूची में खालिद कई पन्ने जोड़ चुके हैं।

ऐसे मुड़ गई जिंदगी की राह –

करीब एक दशक पहले मुजफ्फरनगर पालिका ने रिक्शा की लाइसेंस फीस में बेतहाशा वृद्धि की थी। फीस बीस रुपये से बढ़ाकर सौ और डेढ़ सौ रुपये हो गयी थी। इसमें जो खुद रिक्शा चलाता था, उस पर सौ रुपये फीस थी, जबकि किराये पर चलवाने के लिए डेढ़ सौ रुपये देने होते थे। इसके लिए रिक्शा चालक मोहम्मद खालिद ने आवाज बुलंद की।

खालिद बताते हैं कि उसी दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव एक विवाह समारोह में मुजफ्फरनगर आए थे। विरोध प्रदर्शन के बाद किसी तरह आंख बचाकर वह सीएम तक पहुंच गए। मौखिक और लिखित रूप में पूरा किस्सा बताया। नतीजतन, वर्ष 2004 में कैबिनेट ने बढ़ा लाइसेंस शुल्क निरस्त किया और पूरे सूबे में पुरानी व्यवस्था लागू रखी। इस जीत ने खालिद के जीवन की राह बदल दी। सूचना का अधिकार अधिनियम बनने के बाद उन्होंने इसे हथियार के रूप में इस्तेमाल किया।

अखबार-पत्रिकाओं से मिले शब्द –

मात्र सातवीं कक्षा तक पढ़े खालिद को शुरुआत में लिखा-पढ़ी में बहुत दिक्कत आती थी। अखबारों और पत्रिकाओं में लिखे शब्दों को पढ़कर खालिद नोट करते थे। खालिद बताते हैं कि उन्हीं शब्दों को नोट कर अपनी शिकायतों में शामिल करते थे। इसी जरिए से उनके संघर्ष को दिशा मिली।

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