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पूरी दुनिया में भारत की संस्‍कृति और सभ्‍यता लोकप्रिय है। विदेशों से लोग भारत की इसी सभ्‍यता और यहां रहने वाले लोगों के जीवन मूल्‍यों से आकर्षित होकर यहां घूमने आते हैं। विदेशों में भारत की हर एक चीज़ और परंपरा का बहुत मान है जिसमें से एक पूरे परिवार के साथ रहना भी है।

जी हां, विदेशों में लोग अकेले रहते हैं या दोस्‍तों के साथ रहते हैं और अगर परिवार के साथ रहते भी हैं तो कभी एकसाथ बैठकर खाना नहीं खाते या बात तक नहीं करते हैं लेकिन भारत में ऐसा नहीं है।

सदियों से भारत में संयुक्‍त परिवार में रहने की परंपरा चली आ रही है। यहां पर बच्‍चे अपनी शादी होने के बाद भी अपने माता-पिता के साथ ही रहते हैं और साथ खाना खाते हैं लेकिन समय के साथ अब भारत की परंपराओं में बदलाव आने लगा है और इस संयुक्‍त परिवार की कल्‍पना भी धूमिल होने लगी है।

स्‍टडी में हुआ चौंकाने वाला खुलासा

हाल ही में हुई एक स्‍टडी में यह बात सामने आई है कि भारत में 27 प्रतिशत लोगों ने किसी ना किसी समय या परिस्थि‍ति में अपने परिवार से नाता तोड़ा है। भारत में अब पारिवारिक ढांचे को लेकर बहुत कुछ बदल चुका है। इस तरह परिवार की नींव के बिगड़ने के पीछे कई चीज़ें निर्भर करती हैं।

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रिश्‍तों के मायने हो गए हैं अलग

अब भारत में पश्चिमीकरण ज्‍यादा बढ़ रहा है। आज भले ही हम अपने माता-पिता को प्‍यार करते हों लेकिन कई बार कई चीज़ों को लेकर हम उन्‍हें नज़रअंदाज़ कर देते हैं। वहीं बढ़ती उम्र में माता-पिता भी अपने बच्‍चों की जिम्‍मेदारियों से मुक्‍ति पाना चाहते हैं।

बच्‍चे करते हैं इस्‍तेमाल

परिवार में एक समय ऐसा आता है जब माता-पिता को लगने लगता है कि बच्‍चे उन्‍हें हर समय अपनी जरूरतों के लिए इस्‍तेमाल कर रहे हैं। ऐसा होने पर माता-पिता को भी बुरा लगता है लेकिन बच्‍चों को ये बात समझ नहीं आती है। अगर आपके माता-पिता आपके लिए कुछ कर रहे हैं या मुसीबत में आपके काम आ रहे हैं तो आपको भी उन्‍हें उनकी अहमियत का अहसास करवाना चाहिए। उन्‍हें ये ना लगे कि वो बस आपकी जरूरतों को पूरा करने का बस एक ज़रिया बनकर रह गए हैं।

इस मामले में साइकोलॉजिस्‍ट का कहना है कि भारत में अब परिवारों के टूटने कारण अचानक पैदा नहीं होता है बल्कि इसकी कई पुरानी वजहें हो सकती हैं। अब परिवारों में प्रॉपर्टी को लेकर ज्‍यादा झगड़े होते हैं। किसी सदस्‍य की अनेदखी या छोटे-मोटे मुद्दे पर झगड़ा होने से परिवार के सदस्‍यों के बीच मनमुटाव होने लगता है।

माना कि भारत अब पश्चिमीकरण को अपनाने के लिए आगे बढ़ रहा है लेकिन फिर भी उसे अपनी जड़ों को नहीं भूलना चाहिए। हमारी परंपराएं ही हमारी जड़ें हैं। माना कि परंपराएं बेडियां बन सकती हैं लेकिन अगर इन्‍हें पूरी तरह से हटाने की बजाय इनमें सही बदलाव कर दिया जाए तो ये बेडियां नहीं बल्कि खुशियां लेकर आएंगीं।

आपको ये बात समझनी चाहिए कि परिवार ही हमारा सबसे बड़ा सपोर्ट सिस्‍टम होता है इसलिए कोशिश करें कि परिवार के साथ आपसी तालमेल बनाए रखें और खुशियों को कम ना होने दें।

आजकल बच्‍चे मदर्स डे, फादर्स डे ज्‍यादा मनाने लगे हैं और इस चक्‍कर में बस एक ही दिन अपने माता-पिता को याद करते हैं और बाकी दिन फोन या दोस्‍तों के साथ बिजी रहते हैं। ऐसा करने परिवार की जड़ों को तोड़ देता है।

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