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वाशिंगटन ।। ज्यादातर अभिभावक टेलीविजन पर ऐसे कार्यक्रम खोजते हैं जो उनके बच्चों को ज्यादा शिक्षित कर सकें लेकिन बच्चे टीवी देखने की बजाए खेल से ज्यादा बेहतर सीखते हैं।

‘अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स’ (एएपी) की एक रपट के मुताबिक बच्चों के सीखने के लिए लोगों के उनसे बातचीत करने की आवश्यकता होती है न कि टेलीविजन के पर्दो की। जो अभिभावक अपने बच्चों के साथ टीवी या वीडियो देखते हैं वे बच्चों की समझ बढ़ा सकते हैं लेकिन बच्चे टेलीविजन कार्यक्रम देखने की बजाए वास्तविक घटनाओं से ज्यादा सीखते हैं।

हाल ही में हुए एक सर्वेक्षण में 90 प्रतिशत अभिभावकों का कहना था कि उनके दो साल से कम उम्र के बच्चे किसी न किसी प्रकार के टीवी कार्यक्रम देखते हैं। ‘पीडियाट्रिक्स’ जर्नल के मुताबिक इस उम्र के बच्चे हर दिन औसतन एक से दो घंटे के लिए टीवी कार्यक्रम देखते हैं।

तीन साल की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते लगभग एक तिहाई बच्चों के शयनकक्ष में एक टीवी होता है। जिन अभिभावकों का विश्वास है कि बच्चों के स्वस्थ विकास के लिए शैक्षिक टेलीविजन बहुत आवश्यक है उनके टेलीविजन को ज्यादातर समय तक चालू रखने की सम्भावना दुगुनी होती है।

‘एएपी काउंसिल ऑन कम्युनिकेशन एंड मीडिया’ की सदस्य व रपट की सह-लेखिका एरी ब्राउन ने 1999 में दो साल से कम उम्र के बच्चों के टीवी देखने से सम्बंधित कुछ सलाहें दी थीं। इसमें एक अनुशंसा यह भी थी कि बच्चों को टीवी देखने के लिए हतोत्साहित किया जाए।

रपट में कहा गया है कि कुछ वीडियो कार्यक्रमों को नवजात और छोटे बच्चों के लिए शैक्षिक बताया जाता है जबकि सबूत इस बात की पुष्टि नहीं करते।

बच्चे अपनी शुरुआती आयु में अव्यवस्थित और बेमेल खेलों के जरिए रचनात्कता के साथ सोचना, परेशानियों का निदान निकालना, तार्किकता विकसित करना सीखते हैं।

अभिभावकों के अपने टीवी कार्यक्रम देखने से उनके व बच्चों के बीच बातचीत प्रभावित होती है। इससे बच्चों के खेल व अन्य सक्रियताओं के जरिए सीखने में भी व्यवधान पहुंचता है।

बिस्तर पर सोने के लिए जाते समय टीवी देखने से अच्छी नींद न आने व अनियमित नींद की शिकायत हो सकती है। इसका बच्चों की मनोदशा, उनके बर्ताव व सीखने की क्षमता पर प्रभाव पड़ सकता है।

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