नई दिल्ली ।। बीते पांच हजार सालों में भारतीय कला ने हिंदू और बौद्ध कालों से होते हुए एक लम्बा सफर तय किया है लेकिन पश्चिम के पास इस सफर का कोई विवरण नहीं था। अब वरिष्ठ लेखिका सुषमा के. बहल ने ‘5,000 ईयर्स ऑफ इंडियन आर्ट’ किताब पेश की है, जो दुनिया को भारतीय कला के सफर से परिचित कराएगी।

सुषमा की इस किताब को रोली बुक्स प्रकाशन ने प्रकाशित किया है। सुषमा ने आईएएनएस को बताया, “मैं एक कलाकार के साथ कुछ साल पहले लंदन स्थित दृश्य कलाओं के अंतर्राष्ट्रीय केंद्र पहुंची थी। वहां के अधिकारियों व कलाकारों ने मुझसे कहा कि वहां भारतीय कला पर कोई किताब नहीं है।”

उन्होंने कहा, “आपकी किताबों में सिर्फ तस्वीरें हैं लेकिन उनसे सम्बंधित लिखित सामग्री नहीं है। मैंने कुछ किताबें संग्रहित कीं और वे उन्हें भेज दीं।”

सुषमा की किताब ‘5,000 ईयर्स ऑफ इंडियन आर्ट’ का लोकार्पण भारतीय सांस्कृतिक सम्बंध परिषद (आईसीसीआर) के अध्यक्ष कर्ण सिंह ने किया। इस दौरान भूटान में भारतीय राजदूत पवन वर्मा भी मौजूद थे।

इस किताब की कीमत 3,975 रुपये है। इसमें हिंदू काल की भीमबेटका की गुफा चित्रकला से लेकर बौद्ध काल, मध्ययुगीन मुस्लिम कला, ईस्ट इंडिया कम्पनी के समय की भारतीय कला और समकालीन कला की जानकारी है।

सुषमा ने कहा, “गुप्त काल व बौद्ध कला का मथुरा स्कूल भारतीय कला के इतिहास में महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस काल में हिंदू देवताओं, मंदिर चित्रकारी, खजुराहो जैसे मंदिरों में मूर्तिकला में विविधता मिलती है। ये सभी बातें कलात्मक रचनात्मकता का प्रतिनिधित्व करती हैं, जो मेरी दृष्टि में बहुत महत्वपूर्ण है।”

मध्ययुगीन भारतीय कला में 14वीं से लेकर 18वीं सदी तक की राजपूत, पारसी, गुजराती, दक्खिनी व पहाड़ी और मुस्लिम कला की तस्वीरें प्रदर्शित की हैं और उनके सम्बंध में थोड़ी-थोड़ी जानकारी दी गई है।

किताब में दो तरह की तस्वीरें हैं। एक तो वे तस्वीरें हैं जो आसानी से दिख जाती हैं। दूसरा इसमें कुछ दुर्लभ तस्वीरें भी शामिल की गई हैं।

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