tb symptoms in male and female

दुनिया में क्षयरोग (टीबी) से जुड़े 20 लाख से अधिक मामले हैं और इससे संबंधित मृत्यु दर के मामलों में भारत दूसरा सबसे बड़ा देश बन गया है। माइकोबैक्टीेरियम ट्युबरक्लोरसिस आम तौर पर टीबी का बैक्टीरिया फेफड़ों को प्रभावित करता है और गुपचुप तरीके से पूरे शरीर में फैल जाता है। यह संक्रमण किडनी, पेल्विक, डिम्ब वाही नलियों या फैलोपियन ट्यूब्स, गर्भाशय और मस्तिष्क को प्रभावित कर सकता है। टीबी एक गंभीर स्वाथ्य समस्या है क्यों कि जब बैक्टीरियम प्रजनन मार्ग में पहुंच जाते हैं तब जेनाइटल टीबी या पेल्विक टीबी हो जाती है जो महिलाओं और पुरुषों दोनों में बांझपन का कारण बन सकता है।

महिलाओं में टीबी का असर:

महिलाओं में टीबी के कारण जब गर्भाशय का संक्रमण हो जाता है तब गर्भकला या गर्भाशय की सबसे अंदरूनी परत पतली हो जाती है, जिसके परिणामस्वंरूप गर्भ या भ्रूण के ठीक तरीके से विकसित होने में बाधा आती है। जबकि पुरुषों में इसके कारण एपिडिडायमो-आर्किटिस हो जाता है जिससे शुक्राणु वीर्य में नहीं पहुंच पाते और पुरुष एजुस्पर्मिक हो जाते हैं। इसके लक्षण तुरंत दिखाई नहीं देते हैं और लक्षण दिखाई देने तक यह प्रजनन क्षमता को पहले ही नुकसान पहुंचा चुके होते हैं।

चूंकि यह बैक्टीरिया चुपके से आक्रमण करने वाला है इसलिये उन लक्षणों को पहचानना बहुत मुश्किल है कि टीबी महिलाओं में प्रजनन क्षमता को प्रभावित कर रही है। इसमें अनियमित मासिक चक्र, योनि से विसर्जन जिसमें रक्तके धब्बे भी होते हैं, यौन सबंधों के पश्चात् दर्द होना जैसे लक्षण दिखाई देते हैं लेकिन कईं मामलों में ये लक्षण संक्रमण काफी बढ़ जाने के पश्चात् दिखाई देते हैं।

पुरुषों में टीबी का असर:

पुरुषों में योनि में स्खलन ना कर पाना, शुक्राणुओं की गतिशीलता कम हो जाना और पिट्युटरी ग्रंथि द्वारा पर्याप्त मात्रा में हार्मोंनो का निर्माण ना करना जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। गुप्तांगों में टीबी की मौजूदगी का पता लगाना हालांकि मुश्किल होता है लेकिन कुछ तरीकों से इसकी पहचान की जा सकती है, मसलन फेलोपियन ट्यूब के टीबी से पीड़ित किसी महिला के टिश्यू, यूटेरस से एंडोमेट्रियल टिश्यू का सैंपल लेकर लैब में भेजा जा सकता है जहां कुछ समय बाद बैक्टीरिया बढऩे के कारण इसकी जांच आसान हो जाती है।

टीबी की जांच:

इसके निदान का सबसे भरोसेमंद तरीका ट्यूबक्लेस की पृष्ठभूमि का पता लगाना है जिससे डॉक्टरों को लेप्रोस्कोपी में मदद मिलती है और वे इन संदिग्ध जख्मों की पुष्टि कर पाते हैं कि यह टीबी के कारण है या नहीं। हिस्टेरोसलिं्पगोग्राफी (एचएसजी) भी यूटेरस और एंडोमेट्रियम में असामान्यता की परख करने का बहुत उपयोगी तरीका है। क्रोनिक संक्रमण यूटेराइन की सुराख को भी संकुचित कर सकता है।

टीबी का उपचार:

टीबी की पहचान के पश्चात् एंटी टीबी दवाईयों से तुरंत उपचार प्रारंभ कर देना चाहिए ताकि और अधिक जटिलताएं ना हों। एंटीबॉयोटिक्सं का जो छह से आठ महीनों का कोर्स है वह ठीक तरह से पूरा करना चाहिए, लेकिन यह उपचार डिम्बवाही नलिकाओं को ठीक करने का कोई आश्वासन नहीं देता है। कईं डॉक्टर इन नलियों को ठीक करने के लिये सर्जरी करते हैं, लेकिन यह कारगर नहीं होती है। अंत में संतानोत्पकत्ति के लिये इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन या इंट्रासाइटोप्लाोज्मिक स्पार्म इंजेक्शन (आईसीएसआई)की सहायता लेनी पड़ती है।

दवाइयों से टीबी का इलाज महिलाओं को एआरटी, आईवीएफ या आईयूवी के जरिये गर्भधारण करने में मदद कर सकता है जहां इसके दुष्प्रभाव को खत्म करने के लिए दवाइयां कारगर हो सकती हैं। आप भीड़भाड़ वाली जगहों से दूर रहते हुए टीबी से खुद को बचा सकते हैं क्योंकि भीड़ में आप संक्रमित व्यक्तियों के नियमित संपर्क में रहते हैं।

इसके अलावा उपयुक्तस्वास्थ्य सेवा का लाभ उठाते हुए और नियमित रूप से शारीरिक जांच कराते रहने और यदि संभव हो तो टीबी रोधी टीके लगवाने से इस रोग से बच सकते हैं। टीबी की चपेट में आने से बचने के लिये भीड़-भाड़ वाले स्थानों से दूर रहें, जहां आप नियमित रूप से संक्रमित लोगों के संपर्क में आ सकते हैं। अपनी सेहत का ख्यांल रखें और नियमित रूप से अपनी शारीरिक जांचे कराते रहें। अगर संभव हो तो इस स्थिति से बचने के लिये टीका लगवा लें।

डॉ.सागरिका अग्रवाल,
आई वी एफ एक्स पर्ट,
इंदिरा आईवीएफ हास्पिटल नई दिल्ली

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